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आपके सबसे बड़े सुपुत्र श्रीमान् मांगीलालजी धर्मावत हैं जो अपने पिता द्वारा दिखाये मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं। दूसरे पुत्र श्रीमान् शान्तिलालजी हैं जो अपने पिताश्री की आन-बान निभाने में तत्पर हैं । तीसरे पुत्र श्री राजकुमारजी सरल स्वभावी हैं ।
आपके दस पुत्रियाँ हैं-चंचलबाई, प्रेमबाई, पुष्पाबाई, सुन्दरबाई (साध्वी श्री सुप्रभाकुमारीजी म. सा. 'सुधा'), शान्ताबाई, कमलाबाई, चन्द्रकलाबाई, अनोखाबाई, सुधाबाई और शकुन्तलाबाई । पौत्र-पौत्रियों, दौहित्र-दौहित्रियों से आपका भरा-पूरा परिवार है।
आप दीन-दुःखी, जैन-अजैन समाज के प्रत्येक कार्य में यथावसर सहायता देते रहते थे।
इस अभिनन्दन ग्रन्थ की प्रधान सम्पादिका आर्या श्री सुप्रभाकुमारीजी 'सुधा' आपकी द्वितीय धर्मपत्नी श्रीमती बाबूबाई की सुपुत्री हैं।
श्रीमान तेजराजजी सा. भण्डारी
एवं
श्रीमती इन्दरकुंवर भण्डारी
आपका जीवन आदर्श रहा है। आप एक अच्छे कलाकार हैं। पूर्व में अनेक सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारी वर्षों तक रहे हैं। वर्तमान में सेवानिवृत होने के पश्चात् सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत हैं तथा धार्मिक-व्यवस्थानों का संचालन कर रहे हैं। स्वभाव से आप अतीव शान्त एवं गंभीर हैं । ३९ वर्ष की युवावस्था में ही सजोड़े आपने ब्रह्मचर्य व्रत को अंगीकार कर लिया।
आपके दो पुत्र श्रीमान् रतनराजजी एवं जतनराजजी हैं, जो दोनों ही आपके मनोनुकल एवं आज्ञाकारी हैं तथा दोनों पुत्रियाँ श्रीमती शान्ताबाई और श्रीमती राजश्री देव, गुरु और धर्म के प्रति प्रास्थावान हैं।
आपके अनुरूप आपकी धर्मपत्नी श्रीमती इन्दरबाई भी गंभीर, शान्त एवं सौम्य स्वभाव की हैं । आपने मासखमण आदि अनेक तपस्याओं के साथ एकान्तर तपस्या का जीवन पर्यन्त व्रत ले रखा है । परिग्रह की मर्यादा है। साथ ही ध्यानसाधना भी बहुत ही सराहनीय है। दो तीन महीने में पूज्य गुरुवर्या के पास दिशानिर्देश के लिये आ जाया करती हैं।
आपने ग्रन्थ में उदार हृदय से जो सहयोग प्रदान किया, उसके लिये धन्यवाद । 00
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