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________________ अर्चनार्चन Jain Education International "वीरः ऋषभ नेमिः एतेषां जिनानां पर्यङ्कासनम् । शेषजिनानां उत्सर्ग आसनम् ॥ " पंचम खण्ड / २४० सर्वांगासन, उत्कटासन व शीर्षासन आदि से जहाँ मन की एकाग्रता धाती है वहीं शरीर निरोग हो जाता है । योग धर्मनिरपेक्ष साधनापद्धति है । सब लोग नित्य प्रासन प्राणायाम करें। इनसे दमा, कोलाइट्स, डायबिटीज का उपचार होता है। योग के पास पेप्टिक अल्सर, क्रोध, रोग, शोक सबका इलाज है । योग के अंगों में ध्यान भी एक है और ध्यान का अभ्यास बच्चों में पूर्णता व उच्चता की प्राप्ति के लिये शरीर व मन के शिथिलीकरण के लिये ही नहीं बल्कि मस्तिष्क के दाहिने भाग को अधिक क्रियाशील बनाने के लिये लागू किया जाना चाहिये । इससे बालक के ज्ञानचक्षु खुलते हैं । , योग के द्वारा व्यक्तित्व के दोषों को दूर कर अन्तःप्रज्ञा को विकसित किया जाता है । आजकल विज्ञान द्वारा प्रमाणित हो चुका है कि बालक को पूर्ण शिक्षण देने के लिये योग के पास सुविधाएँ हैं। योगाभ्यास द्वारा प्रान्तरिक शक्ति की प्राप्ति व बौद्धिक, व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। योग प्रेम, करुणा उत्पन्न करता है जिससे व्यक्ति का विकास होता है । For Private & Personal Use Only -२२, भक्त नगर, दशहरा मैदान, उज्जैन (म. प्र. ) 1 www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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