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________________ पंचम खण्ड / २२० और आपको विश्राम और मार्गदर्शन मिलेगा । इसी आधार पर वे चाहते हैं कि जब भी हम श्वास लें, हमारे चिन्तन में यह होना चाहिए कि हम ईश्वर की आत्मा को और अपने फेफड़ों को उस दिव्यशक्ति से भर दें और जब हम प्रश्वास कर करें कि हम अपनी अशुद्धियों को बाहर निकाल रहे हैं । अपने में ले रहे हैं रहे हैं यह विचार श्वास और प्रश्वास का मूल्य ईश्वर के सामने नहीं है । यशय्याह नवी चेतावनी देता है अर्चनार्चन कि "तुम मनुष्य से परे रहो जिसकी श्वास उसके नथनों में है, क्योंकि उसका मूल्य है ही क्या ?" (यशय्याह २:२२ ) Jain Education International प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि जैसे प्रत्यय बैबल में से निकालना एक शोध कार्य से कम नहीं है । इस लेख में इन सबकी चर्चा करना भी स्थानाभाव के कारण उचित नहीं है । अतः इस विषय में अन्यत्र लिखा जायेगा । संदर्भ सूची १. कुलुस्सियो २।२३ ३. वही ५३८ ५. याकूब की पत्री ११४ ७. १ करिन्थियो २।१४ ९. १ विस्सलुनीकियो ५२३ ११. वही १:३-४ १३. वही - २११२ १५. क्रिश्चन योग - डेबनेट, पृ. २७ १७. पायोनियरस थॉफ इन्डिजेनियस त्रिश्चनिटी. पृ. १०५ १९. २ राजा ४:४२-४४ २१. लूका ९।२३ २३. दी काउन ग्रॉफ हिन्दूइज्म, पृ. २९५ २५. योना ३६ २७. मत्ती ५६ २. १ तिमुथिथुस ४८ ४. उत्पति १७।१ ६. The Experimental Response P.26 ५. इफिसियो ३।१९ १०. याकूब की पत्री ३२ १२. तीतुस १८ १४. मत्ती १९।२१ १६. योग और क्रिश्चन मेडिटेशन १८. २ राजा ४:१-७ २०. दी क्राउन श्रॉफ हिन्दूइज्म-फर्खर, पृ. २९४ २२. रिलीजियस हिन्दूज्म – पाठ १७ २४. भारतीयदर्शन भाग २, डॉ. राधाकृष्णन्, पृ. ३५० २६. कलुस्सियो २०२३ २८. साधना-ए वे टू गॉड, एन्थोनी डी. मेलो, पृ. २४ For Private & Personal Use Only आराधना २७ रवीन्द्रनगर शिक्षा महाविद्यालय के पीछे उज्जैन (म. प्र. ) 00 www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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