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प्रेक्षाध्यान और शक्ति-जागरण | ११९
छोटी हो जाती है, जब मन का बल टूट जाता है, तब राई भी पहाड़ बन जाती है। समस्या को बड़ा, छोटा नहीं कहा जा सकता । कोई भी समस्या स्वयं में बड़ी नहीं है और कोई भी समस्या स्वयं में छोटी नहीं है। मनोबल अटूट है तो प्रत्येक समस्या छोटी है। मनोबल टूटा हुअा है, तो प्रत्येक समस्या बड़ी है । समस्या का छोटा होना या बड़ा होना, भयंकर होना या सरल होना इस बात पर निर्भर है कि मनोबल कम है या अधिक । प्रादमी समस्या पर ध्यान अधिक केन्द्रित करता है। समस्या को सुलझाने का अधिक प्रयत्न करता है । जैसे जैसे वह सुलझाने का प्रयत्न करता है, वैसे-वैसे समस्या उलझती जाती है और इसलिए उलझती जाती है कि मनोबल नहीं बढ़ता और मनोबल के अभाव मेंसमस्या का समाधान हो सके, यह संभव नहीं हो सकता । समस्या के समाधान के लिए शक्ति का संचय जरूरी है। जितनी शक्ति है, उतनी यदि खर्च हो जाती है तो समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
ध्यान के द्वारा मिलता है-मनोबल, चित्तशक्ति, शुद्ध चेतना का पराक्रम । ध्यान के द्वारा एक ऐसी शक्ति मिलती है, जो व्यक्ति को प्रत्येक समस्या को झेलने में सक्षम बनाती है। व्यक्ति में ऐसी शक्ति जगा देती है कि वह प्रत्येक परिस्थिति का हंसते-हंसते सामना कर सकता है, समस्या को सुलझा सकता है, अच्छी-बुरी घटना घटित होने पर भी संतुलन नहीं खोता ।
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आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जम
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