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आचार्य हरिभद्र सूरि और उनका योग-विज्ञान / ११५
प्राचार्य हरिभद्र सूरि का ऋणी होना चाहिए, जिन्होंने जैन योग पर ग्रन्थ लिखकर मार्गदर्शन किया।
इस प्रकार प्राचार्य श्री हरिभद्र सूरि ने योग की प्राचीन जैन परम्परा का न केवल उद्धार किया, अपितु उसे एक अभिनव स्वरूप प्रदान कर भारतीय योगदर्शन-परम्परा के समक्ष खड़ा कर गौरवान्वित किया है । इसे मैं प्राचार्यश्री का भारतीय संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में ऐसा महत्त्वपूर्ण योगदान मानता है, जिसे इतिहास कभी विस्मृत नहीं कर सकेगा।
मानद निदेशक अनेकान्त शोधपीठ,
बाहुबली-उज्जैन, १५, एम. आई, जी, मुनिनगर
उज्जैन
आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जन
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