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आचार्य हरिभद्र सूरि और उनका योग-विज्ञान / १११ द्वारा-जो योग की सर्वोत्तम दशा है, शीघ्र ही संसाररूप व्याधि का क्षय करके परम निर्वाण को प्राप्त कर लेता है:
"तत्र द्रागेव भगवानयोगाद्योगसत्तमात् ।
भवव्याधिक्षयं कृत्वा निर्वाणं लभते परम् ।।"' इस प्रकार 'योगदष्टिसमुच्चय' में अष्टाङ्गयोग, योग एवं योगियों के वर्गीकरण तथा प्रयोग से योग के चरमलक्ष्य की प्राप्ति के निरूपण में नवीनता है।
३. योगशतक
प्रस्तुत ग्रन्थ विषय-निरूपण की दृष्टि से 'योगबिन्दु' के अधिक निकट है। 'योगबिन्दु' में वर्णित अनेक विषयों का 'योगशतक' में संक्षेप में वर्णन किया गया है।
योग के भेद-ग्रन्थ के प्रारम्भ में योग का स्वरूप दो प्रकार का बताया गया है-निश्चय और व्यवहार । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, एवं सम्यक चारित्र-इन तीनों का प्रात्मा के साथ संबंध होना 'निश्चययोग' है । ' कारण में कार्य के उपचार की दृष्टि से, सम्यग्दर्शनादि के तत्त्वार्थश्रद्धानादि कारणों का प्रात्मा के साथ सम्बन्ध होना 'व्यवहारयोग' है। ___योग-साधना के अधिकारी और अनधिकारी का वर्णन 'योगबिन्दु' के समान किया गया है । चरमपुद्गलावर्त में प्रवर्तमान योग-अधिकारी का वर्णन तथा अपुनर्बंधक, सम्यग्दृष्टि प्रादि का वर्गीकरण 'योगबिन्दु' के समान है।
नवाभ्यासी की चर्या-योग-साधना के नवाभ्यासी को भावना, शास्त्रपाठ, तीर्थसेवन, शास्त्रश्रवण, तदर्थज्ञान, सूक्ष्मतापूर्वक प्रात्मप्रेक्षण तथा अपने दोषों के अवलोकन में अभिरत रहना चाहिए।
चिन्तन के दो प्रकार-योगसाधक के चिन्तन के दो प्रकार बताए गए हैं-१. दोषचिन्तन तथा २. सच्चिन्तन ।
आसक्तिरूप राग, अप्रीतिरूप द्वेष तथा प्रज्ञानरूप मोह-इनमें से मुझे अत्यधिक रूप से कौन पीड़ा दे रहा है ? यह समझकर दोषों के विषय में उनके स्वरूप, परिणाम, विपाक आदि का एकान्त में एकाग्र मन से भलीभाँति चिन्तन ‘दोष-चिन्तन' है।
परमसंविग्न साधक प्राणिमात्र के प्रति मैत्री, गुणाधिकों में प्रमोद, दुःखियों के प्रति कारुण्य एवं अविनीतजनों के प्रति जो माध्यस्थ भाव का चिन्तन करता है वह 'सच्चिन्तन' है।
१. योग दृष्टि समुच्चय १८६ २. योगशतक २-"निच्छयो इह जोगो सन्नाणाईण तिण्ह सम्बन्धों" । ३. वही ४ "ववहारमो य एसो विन्नेग्रो एयकारणाणं पि' । ४. वही ९, १४,१५. ५. योगशतक ५१-५२ ६. वही ५९-६० ७. "सत्तेसु ताव मेत्ति तहा पमोयं गुणाहिएK ति ।
करुणा मज्झत्थत्ते किलिस्समाणाविणीएस ॥" -वही ७९ तथा ७८
आसनस्थ तम आत्मस्थ मम तब हो सके| आश्वस्त जम
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