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________________ आचार्य हरिभद्र सूरि और उनका योग-विज्ञान डॉ. हरीन्द्रभूषण जैन ( मंगलाचरण ) नमिऊण जोगिनाहं सुजोगसंवंसगं महावीरं । वोच्छामि जोगबड्ढं हरिभद्दमुणिदविण्णाणं ॥ अर्थात् - - योगियों के स्वामी एवं उत्तम योग-मार्ग को दिखाने वाले भगवान महावीर को नमस्कार करके मैं हरिभद्र मुनीन्द्र के योग से संबद्ध विज्ञान का विवेचन करता हूँ । आचार्य हरिभद्र सूरि और उनका वैदुष्य प्राचार्य हरिभद्र सूरि, उन पुरातन चिन्तकों में से एक हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और ज्ञान से भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं साहित्य के क्षेत्र में महनीय योगदान किया है । वे श्रागम-रहस्यज्ञाता, प्रतिभाशील तार्किक, प्रकाण्ड न्यायविद्, क्रान्तदर्शी साधु एवं अद्भुत कथाकार तो हैं ही, उनका भारतीय तुलनात्मक योगज्ञान भी सातिशायी है । आचार्य हरिभद्र एक ऐसे प्रशस्त रचनाकार हैं जिनका समस्त भारतीय धर्मों एवं दर्शनों पर प्रबल आधिपत्य है । यह जानकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है कि उनकी रचनाओं में जहाँ एक ओर विभिन्न भारतीय विचारधाराओंों का तात्त्विक विवेचन है वहीं पर उन विचारधारानों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए जैन दृष्टिकोण की भी विशुद्ध व्याख्या है । यह बात योग निरूपण के प्रसंग में तो शत-प्रतिशत सही है । इसलिए हमने आचार्य हरिभद्र के यौगिक ज्ञान को योग विज्ञान की संज्ञा प्रदान की है । जीवनवृत्त एवं सामाजिक अवदान प्राचीन भारतीय परम्परा का अनुसरण करते हुए आचार्य हरिभद्र ने अपने विषय में कुछ भी नहीं लिखा है । आचार्य प्रभाचन्द्र रचित 'प्रभावकचरित १ (वि. सं. १३३४), राजशेखर सूरि रचित 'प्रबन्धकोश' २ ( वि. सं. १४०५), 'पुरातनप्रबन्ध संग्रह' आदि प्रबन्धग्रन्थों में प्राचार्य 3 १. 'प्रभावकचरितम्' - सिंघी जैन ग्रन्थमाला, अहमदाबाद तथा कलकत्ता, ई. १९४०, सम्पादक - मुनिजिनविजयजी, ९ वां प्रबन्ध 'हरिभद्रसूरिचरितम्' २. 'प्रबन्धकोश: ' सिंधी जैन ग्रन्थमाला, १९३५, ८ वां प्रबन्ध 'हरिभद्रसूरिप्रबन्ध : ' १९३६, ५४ वां प्रबन्ध 'हरिभद्रसूरिप्रबन्ध : ' ३. ' पुरातन प्रबन्ध संग्रह : ' सि. जे. ग्रन्थ, Jain Education International For Private & Personal Use Only आसमस्थ तम आत्मस्थ मन तब हो सके आश्वस्त जन www.jainelibrary.org
SR No.012035
Book TitleUmravkunvarji Diksha Swarna Jayanti Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuprabhakumari
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1988
Total Pages1288
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size30 MB
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