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तुणिमूढगपास्य रुदन्तं पोतमोतुमधिरोप्य कटोरे।
कापि धावितवती नहि जज्ञ हस्यमानमपि जन्यजनः स्वम् ॥५॥४१ विभिन्न रसों के चित्रण में निपुण होते हुए भी जयशेखर अपने काव्य में किसी रस का प्रधान रस के रूप में पल्लवन करने में असफल रहे यह प्राश्चर्य की बात है।
- जैनकुमारसम्भव के वर्णन-बाहुल्य में प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण को पर्याप्त स्थान मिला है। जयशेखर का प्रकृति-चित्रण भारवि, माघ आदि की कोटि का है, जिसमें उक्ति-वैचित्य के द्वारा प्रकृति के अलंकृत चित्र अंकित करने पर अधिक बल दिया गया है । परन्तु जैन कुमारसम्भव के प्रकृतिचित्रण की विशेषता यह है कि वह यमक आदि की दुरूहता से आक्रान्त नहीं और न ही उसमें कुरुचिपूर्ण शृगारिकता का समावेश हुआ है। इसलिये जयशेखर के रात्रि, चन्द्रोदय, प्रभात प्रादि के वर्णनों का अपना आकर्षण है। प्रकृति के ललित कल्पनापूर्ण चित्र अंकित करने में कवि को अद्भुत सफलता मिली है। रात्रि कहीं गजचर्मावृत तथा मुण्डमालाधारी महादेव की विभूति से विभूषित है, तो कहीं वर्णव्यवस्था के कृत्रिम भेद को मिटानेवाली क्रान्तिकारी योगिनी है।
अभुक्त भूतेशतनोविभूति भौति तमोभिः स्फुटतारकौघा । विभिन्नकालच्छविदन्तिदैत्यचर्मावतेभूरिनरास्थिभाजः ॥६॥३ कि योगिनीयं ध तनीलकन्था तमस्विनी तारकशंखभषा ।
वर्णव्यवस्थामवधूय सर्वामभेदवादं जगतस्ततान ॥६॥८ रात्रि वस्तुतः गौरवर्ण थी। वह सहसा काली क्यों हो गयी है। इसकी कमनीय कल्पना निम्नोक्त पद में की गयी है । यह अनाथ सतियों को सताने का फल है कि उनके शाप की ज्वाला में दह कर रात्रि की काया काली पड़ गयी है :
हरिद्रयं यदभिन्ननामा बभूव गौर्येव निशा ततः प्राक् ।
सन्तापयन्ती तु सतीरनाथास्तच्छापदग्धाजनि कालकाया ॥६७ प्रौढोक्ति के प्रति अधिक प्रवृति होते हुए भी जयशेखर प्रकृति के सहज रूप से पराङ मुख नहीं है कुमारसम्भव में प्रकृति के स्वाभाविक चित्र भी प्रस्तुत किए गये हैं। किन्तु यह स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए कि प्रकृति के पालम्बन पक्ष की ओर उसका रुझान अधिक नहीं है । षड् ऋतु प्रभात तथा सूर्योदय के वर्णन में प्रकृति के सहज पक्ष के कतिपय चित्र दृष्टिगत होते हैं। प्रातःकालीन समीर का प्रस्तुत वर्णन अपनी स्वाभाविकता के कारण उल्लेखनीय है :
दिनवदनविनिद्रीभूतराजीवराजीपरमपरिमल श्रीतस्करोऽयं समीरः । सरिदपहृतशेत्यः किञ्चिदाघूय वल्ली
भ्रमति भुवि किमेष्यच्छर भीत्याऽव्यवस्यम् ॥१०॥८१ १. जैन कुमारसम्भव, ६।५३, ५६, ६३. १ वही, ११११, १०, १२.
એ આર્ય કયાણ ગોલમસ્મૃતિગ્રંથ 3
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