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________________ [५६] . NAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAmmami इस लड़की ने चित्तौड़ में जाते ही श्याम पार्श्वनाथ का मंदिर बनाया और अपने पति महारावल तेजासिंह को जैनधर्म की पोर इतना पाकृष्ट कर दिया कि उसने भट्टारक की पदवी धारण कर ली और कई जैन उपाश्रयों को भूमि आदि दिलवाई। इसी राणी के प्रभाव के कारण तेजासिंह के पुत्र रावल समरसिंह ने अंचलगच्छ के प्रभावक जैनाचार्य गच्छनायक श्री अजितसिंहसूरि के उपदेश से अपने सारे मेवाड़ राज्य में जीवहिंसा बंद करवा दी। गुजरात के जैन राजा कुमारपाल से उसके प्रसिद्ध गुरु हेमचंद्राचार्य भी जो कार्य नहीं करवा सके वह कार्य अजितसिंहसरि ने मेवाड़ के राजा से करवा दिया। महाराज अशोक के बाद यह दूसरी घटना है कि एक राज्य में पूर्ण रूप से एक राजा ने जीवहिंसा बंद करवा दी। भारत के धार्मिक इतिहास में ऐसी घटना अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगी। जैनाचार्य अंचलगच्छनायक अजितसिंह सरि ने जैनधर्म के कीर्तिमन्दिर पर सारे राज्य में जीवहिंसा बंद कराकर कलश चढ़ा दिया । यह घटना सं. १३३० से १३३८ के बीच की है जबकि समरसिंह मेवाड़ का राजा राज कर रह था। उत्तमखममद्दवज्जव-सच्चसउच्चं च संजमं चेव । तव चागर्माकंचाहं, बम्ह इदि वसविहो धम्मो ॥ उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य तथा उतम ब्रह्मचर्य । ये दस प्रकार के धर्म हैं। जा जा बज्जई रयणी, न सा पडिनियत्तई। अहम्मं कुणमाणरस, अफला जन्ति राइओ॥ जो-जो रात बीत जाती है, वह वापस लौटकर नहीं आती । अधर्म करनेवाले की रात निष्फल जाती है। अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। अप्पा मित्तममित्त च, दुप्पट्ठिय सुप्पट्टिओ ॥ सुख-दुःख का कर्ता आत्मा ही है और भोक्ता (विकर्ता) भी आत्मा ही है, सत् प्रवृत्ति करनेवाली आत्मा ही स्वयंका मित्र है और दुष्प्रवृत्ति करनेवाली आत्मा ही स्वयंका शत्रु है । શ્રી આર્ય કયાણાગોમસ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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