SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 964
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ / / / / / / / / / / / / / / [ 39 ] भीषण अकाल की चपेट में श्रागया । जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया और पशु मृत्युज्यां को प्राप्त होने लगे । चारों ओर पीने के पानी की किल्लत ने जनमानस को अत्यन्त ही पीड़ित कर दिया और प्रन्नाभाव से भूख से तड़पने की नौबत उत्पन्न हो गई। इन संकट से अकाल पीड़ितों को सहायता एवं सहयोग देने के लिए कई समाजसेवी संस्थाओं एवं दानवीरों ने अनुकरणीय योगदान किया । इन्हीं दिनों गुजरात क्षेत्र के कई धर्मप्रेमी एवं धर्म प्रचारक भी इस संकट में जन सहयोग देने पाली की अकाल पीड़ित जनता के बीच जनसेवी बनकर प्राये । अंचलगच्छ के यतिवर्य श्री देवसागर भी पाली पधारे। यति देवसागर एवं श्रीमाली ब्राह्मण श्री धीरमल के बीच पारस्परिक मंत्री सम्बन्ध बन गया । पाली मारवाड़ के अकाल का अन्त हो गया लेकिन श्रीमाली ब्राह्मण श्री धीरमल एवं यति देवसागर के बीच मैत्री का सम्बन्ध और अधिक गहरा बन गया। एक दिन यति श्री देवसागर एवं श्रीमाली श्री धीरमल बातचीत में तन्मय थे कि बालक गुलाबमल बालक्रीड़ाम्रों को करता हुआ अचानक यतिजी की गोद में आकर बैठ गया और यति वेश को धारण करने की जिद्द करने लगा । बालक के प्रोजस्वी स्वरूप एवं शारीरिक लक्षणों को देखकर यति श्री देवसागर ने कहा कि यह बालक भविष्य में महान् धार्मिक व्यक्ति बनेगा इसमें संगठन की अनूठी शक्ति होगी, जिस धर्म का यह प्रचार प्रसार करेगा उसकी कीर्ति भविष्य में नया मोड़ लेगी और जनमानस का कल्याण करने में यह सदैव मार्गदर्शक बने रहेंगे । अनेकों संकटों, तिरस्कारों, विपदाएं इन पर अवश्य ही आवेगी लेकिन यह अपने मार्ग पर दृढ़ रहेगा। दो मित्रों की आपसी चर्चा और बालक की बाल अठखेलियां चल रही थी । यति श्री देवसागर ने बालक को देने का प्रस्ताव श्रीमाली ब्राह्मण श्री धीरमल के समक्ष रखा। गुलाबमल के माता-पिता ने सहर्ष पतिजी के प्रस्ताव को स्वीकार किया और पांचवर्षीय बालक को यति श्री देवसागरजी को वि. सं. १९२५ में सौंप दिया । मां बाप का लाड़ला पुत्र गुलाबमल अब प्रति श्री देवसागर के साथ धार्मिक वातावरण में पलने लगा । यति जी ने इनकी जिज्ञासाओं, स्मरणशक्ति, ज्ञानगरिमा को देखकर इनका नाम ज्ञानचन्द रखा । बालक गुलाबमल अब ज्ञानचन्द के नाम से परिचायक बन गया । विद्या में तल्लीन एवं धर्म प्रचार में व्यस्त रहने वाले बालक को देखकर यति स्वरूपसागर ने चाहा कि यह बालक यदि जैन साधु बन जाये तो यह जैन जगत की अनूठी सेवा कर सकेगा । यति स्वरूपसागर की इच्छानुसार बालक ज्ञानचन्द को यति श्री देवसागर ने इन्हें सौंप दिया । अब ज्ञानचन्द धार्मिक क्षेत्र की गहराई में अधिक खो गया । दीक्षा नहीं दी थी परन्तु यति जीवन के रूप में रहकर इन्होंने कई जैन व्रतों को धारण कर लिया था । अनेकों धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन कर लिया। कई विद्याओं में यह दक्ष बन चुका था । बचपन यौवन में परिवर्तित हो गया और युवा ज्ञानचन्द विशेष दूने उत्साह से जैन धर्म के प्रचार प्रसार में व्यस्त रहने लगा । यद्यपि इन्हें जैन साधुत्व की जहां कहीं भी धर्म चर्चा होती युवक ज्ञानचन्द योजस्वी वाणी, प्रास्था, सुविचारों से जैन धर्म की महिमा को जन-जन में पहुँचाने में प्रयत्नशील रहने लगे। इनकी वाणी की मधुरता, ज्ञानगरिमा, स्पष्ट विचारों को सुनकर जनमानस इनके व्यक्तित्व की तरफ और अधिक आकर्षित होने लगा। अन्त में स्वयं ज्ञानचन्द ने ही पूर्णरूप से जैन यति की दीक्षा ग्रहण करने का सुरढ़ निश्चय कर लिया। वि. सं. १९४० की वैशाख सुदी શ્રી આર્ય કલ્યાણ ગૌતમ સ્મૃતિ ગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy