________________
AIIMILAILA
A AAAmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm [२७]
सूरदास को प्रतिबोध देकर धोलका के कलिकुण्ड पार्श्वनाथ की पूजा करवाई। जंबू (जम्मू) नरेश राउ गजमल गया जीवनराय प्रति श्री मेरुतुगसूरि के चरणवंदनार्थ आये। सरिजी अपार गुरणों के समुद्र हैं, नये नये नगरों के संघ वंदनार्थ पाते हैं। साह सलखा सोदागर कारित उत्सव से, श्री महीतिलकसरि एवं महिमश्री महत्तरा का पदस्थापन जम्म में साहू वरसिंघ कारित उत्सव से हुया । खीमराज संघपति द्वारा खंभातमें उत्सव होने पर मेरुनंदनसरि की पदस्थापना हुई। माणिक्यशेखर को उपाध्यायपद, गुणसमुद्रसरि, माणिकसुदरसूरि को साह तेजा कारित उत्सव में खंभनयर में और वहीं जयकीर्तिसरि को संघवी राजसिंह कृत उत्सव से प्राचार्यपद स्थापित किया। इस प्रकार छह प्राचार्य, ४ उपाध्याय तथा १ महत्तरा वाणारिस, पन्यास, पवत्तिणी प्रभृति संख्याबद्ध पदस्थापित व दीक्षित किये।
सूरिजीने पट्टण, खंभात, भड़ौंच, सोपारक, कुकरण, कच्छ, पारकर, सांचौर, मरु, गुज्जर, झालावाड, महाराष्ट्र, पंचाल लाटदेश, जालोर, घोघा अनां, दीव, मंगलपुर नवा प्रभति स्थानों में पाराधनापूर्वक विहार किया। अंत में आराधनापूर्वक सं. १४७१ में मार्गशीर्ष पूणिमा सोमवार के पिछले प्रहर उत्तराध्ययन श्रवण करते हये अर्हतसिद्धों के ध्यान से श्री मेरुतुगसरिजी स्वर्ग सिधारे।
B
जं जं समयं जीवो आविसइ जेण जेण भावेण ।
सो तंमि तंमि समए, सुहासुहं बंधए फम्म ॥ जिस समय प्राणी जैसे भाव धारण करता है, उस समय वह वैसेही शुभ-अशुभ कर्मों के साथ बंध जाता है ।
तं जइ इच्छसि गंतु, तोरं भवसायरस्स घोरस्स।
तो तवसंजमभंडं, सुविहिय ! गिण्हाहि तुरंतो।। अगर तू घोर भवसागर के पार जाना चाहता है, तो हे सुविहित ! तू तप-संयमरूपी नौका को तुरन्त ग्रहण कर।
धम्मो बत्यसहावो, खमाविभावो य क्सविहो धम्मो।
रयणत्तयं च धम्मो, जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ वस्तु का स्वभाव धर्म है । क्षमादि भावों की अपेक्षा वह दस प्रकार का है। रत्ननय (सम्यगदर्शन, सम्यग ज्ञान और सम्यक् चारित्र) तथा जीवों की रक्षा करना उसका नाम धर्म ।
આ છ આર્ય કયાણાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ) ADS
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org