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________________ बिब जीरापल्ली नगर में आया । सभी महाजनों ने वहां प्रवेशोत्सव किया। पहले चैत्य में स्थापित वीर बिंब को हटाकर श्री संघ की अनुमतिपूर्वक बिंब को इसी चैत्य में स्थापित किया। बाद में वहां पर अनेक संघ आने लगे तथा उनका मनोरथ उनका अधिष्ठायक देव पूर्ण करने लगा। इस तरह यह तीर्थ हुअा।। ऐसी मान्यता है कि यवन सेना के द्वारा मूर्ति खण्डित होने पर अधिष्ठायक देव की आज्ञा से दूसरी मूर्ति की स्थापना हुई, पहली मूर्ति नवीन मूर्ति के दक्षिण भाग में स्थापित की गई थी। इस मूर्ति को सर्वप्रथम पूजा जाता है एवं इस मूर्ति को दादा पार्श्वनाथ की मूर्ति के नाम से जाना जाता है । ___ धांधलजी द्वारा निर्मित इस नवीन पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा वि. सं. ११९१ में प्राचार्य श्री अजितदेवसूरि ने की। वीर वंशावली में उसका उल्लेख इस प्रकार दिया गया है: "तिवारई धाधलई प्रासाद निपजावी महोत्सव वि. सं. ११९१ वर्षे श्री पार्श्वनाथ प्रासादे स्थाप्या श्री अजितदेवसूरि प्रतिष्ठया" इस प्रकार यह तीसरी बार की प्रतिष्ठा थी। पहली (वि. सं. ३३१) अमरासा के समय में प्राचार्य देवसूरिजी ने करवाई। दूसरी बार मन्दिर का निर्माण यक्षदत्तगरणी के शिष्य वटेश्वरसरिजी ने . आकाशवप्र नगर के नाम से मन्दिर की स्थापना की। तीसरी बार धांधलजी के समय में मन्दिर बना । कुछ इतिहासकार वटेश्वरसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित आकाशवप्र नगर के मन्दिर की बात विवादास्पद होने के कारण स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार मन्दिर की प्रतिष्ठा तीसरी बार हुई न कि मन्दिर का निर्माण । पहली प्रतिष्ठा प्राचार्य देवसूरिजी ने, दूसरी प्रतिष्ठा प्राचार्य हरिभद्रसूरिजी ने और तीसरी बार यह प्रतिष्ठा प्राचार्य अजितदेवसरिजी ने की। धांधलजी द्वारा निर्मित मन्दिर व मूर्ति को नुकसान अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा पहुँचाने की बात की पुष्टि जीरापल्ली मण्डन पार्श्वनाथ विनती नाम के एक प्राचीन स्रोत से इस प्रकार से होती है: "तेरसई अडसट्टा (१३६८) वरिसिहि, असुरह दलु जीतउ जिणि हरिसिहि भसमग्रह विकराले ॥" (कडी ९) कान्हडदेव प्रबंध के अनुसार एवं अन्य ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि संवत् १३६७ में अलाउद्दीन खिलजी ने सांचोर के महावीर मन्दिर को नष्ट किया और उसी समय उसने जीरावल के मन्दिर को भी नुकसान पहुँचाया। उपदेश तरंगिणी के पृष्ठ १८ के अनुसार संघवी पेथडसा ने संवत १३२१ में एक मन्दिर बनवाने की बात लिखी है परन्तु शायद यह मन्दिर आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिया गया होगा। महेश्वर कवि लिखित काव्य मनोहर नामक ग्रन्थ के सातवें सर्ग ३२ वें श्लोक में लिखा हुआ है कि मांडवगढ़ के बादशाह आलमशाह के दरबारी श्रीमाल वंशीय सोनगरा जांजणजी सेठ के छह पुत्रों के साथ संघवी पाल्हराज ने इस तीर्थ में ऊंचे तोरणों सहित एक सुन्दर मंडप बनवाया । जीरापल्ली महातीर्थे, मण्डपं तु चकार सः। उत्तोरणं महास्तभं, वितानांशुकभूषणम् ॥ શ્રી આર્ય કયાણાગતમ સ્મૃતિગ્રંથ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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