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शिखर किया और पंचधार भोजन से भूपेंद्रको जिमाया। दो सौ गोठी जो मूढ थे वे सुज्ञानी श्रावक हुए । कांडाबाण पाषाणसे एक पौषधशाला बनवाई। कच्छ देशमें प्रोसवालोंके माढा स्थानमें एक राजड़ चैत्य है और बड़ी प्रसिद्ध महिमा है।
नागनगरके उत्तरदिशामें अन्न-पाणी की परब खोली। कच्छके मार्गमें बिडी तटस्थानमें पथिकोंके लिए विश्रामगृह करवाया और पासहीमें हनुमंत देहरी बनवाई। नामनदीके पूर्वकी ओर बहुत से स्तंभोंवाला एक चौग बनवाया जिसकी शीतल छायामें शीत व तापसे व्याकुल मानव आकर बैठते हैं। नवानगरमें राजड़ने विधिपक्षका उपाश्रय बनवाया सौद्वारवाली वस्तुपालकी पोसालके सदृश राजड़की अंचलगच्छ परशाल थी। धारागिरके पास तथा अन्यत्र इन्होंने वखारें की। काठावाणी पाषाणका सप्तभूमि मंदिर सुशोभित था। जिसकी सं. १६७५ में राजड़ने बिबप्रतिष्ठा करवाई। जामसाहबने इनका बड़ा आदर किया। सं. १६८७ में गरीबोंको रोटी तथा १॥ कलसी अन्न प्रतिदिन बांटते रहे। वणिक वर्ग जो भी आता उसे स्वजनकी तरह सादर भोजन कराया जाता था । इस दुष्कालमें जगडूसाहकी तरह राजड़ने भी अन्नसत्र खोले और पुण्यकार्य किये।
अब राजड़ के मनमें शत्रुजय यात्रा की भावना हुई और संघ निकाला । शत्रुजय पाकर प्रचुर द्रव्यव्यय किया। भोजन और साकर के पानी की व्यवस्था की। आदिनाथ प्रभु और बावन जिनालय की पूजा कर ललित सरोवर देखा । पहाड़ पर जगह जगह जिनवंदन करते हुए नेमिनाथ, मरुदेवी माता, रायण पगली, शान्तिनाथ प्रासाद,
द आदिनाथ, विध्न विनाशन यक्षस्थान में फल नारियल भेट किये। मुनिवर कारीकुण्ड (?) मोल्हाव सही. चविशतिजिनालय, अनुपमदेसर, वस्तगप्रासाद आदि स्थानों में चैत्यवंदना की। खरतर देहरा, चौकी, सिंहद्वार आदि स्थानों को देखते हुए वस्तुपाल देहरी नंदीश्वर जिनालय, होकर तिलखा तोरण-भरतेश्वर कारित आदि जिनालय के द्वार वगैरह देखते दाहिनी ओर साचोरा महावीर, विहरमान पांच पांडव, अष्टापद, ७२ जिनालय, मुनिसुव्रत और पुडरिकस्वामी को वंदना कर मूलनायक आदीश्वर भगवान की न्हवण विलेपनादि से विधिवत् पूजा की। फिर नवानगर से आकर सात क्षेत्रों में द्रव्यव्यय किया।
रामूने गौड़ी पार्श्वनाथ की यात्रा के निमित्त भूमिशयनका नियम ले रखा था, अतः संघ निकालने का निश्चय किया गया । वागड़, कच्छ, पचाल, हालार आदि स्थानों के निमंत्रण पाकर एकत्र हुए। पांच सौ सेजवाला लेकर संघ चला, रथों के खेहसे सूर्य भी मंद दिखाई देता था। प्रथम प्रयाण धूप्रावि, दूसरा भाद्र, तीसरी केसी और चौथा बालामेय किया। वहां से रणमें रथ घोड़ों से खेड़कर पार किया और कीकांण आये, एक रात रहकर अंजार पहुंचे। यहां यादव खंगार के पास अगणित योद्धा थे। कुछ दिन अंजार में रहकर संघ धमडाक पहुंचा। वहां से चुखारि वाव, लोद्राणी, रणनी घेडि, खारड़ी रणासर होते हुए पारकर पहुंचे। राणाको भेट देकर सम्मानित हुए फिर गौड़ी जी तरफ चले । चौदह कोस थल में चलने पर श्री गौड़ीजी पहुंचे। नवानगर से चलने पर मार्ग में जो भी गाम-नगर आये, दो सेर खांड और रौप्यमुद्रा लाहण की। संघ इतर लोगों को अन्न व मिष्टान्न भोजन द्वारा भक्ति कर संतुष्ट किया।
अब श्रीगौडीजीसे वापिस लौटे और नदी गांव और विषम मार्ग को पार करते हुए सकुशल नवानगर पहुंचे । राजड़ साहकी बड़ी कीति फैली। जैन अंचलगच्छके स्वधर्मी बंधुओं में राजड़ साहने जो लाहण वितरित की वह समस्त भारतवर्ती ग्राम-नगर में निवास करने वाले श्रावकों से संबंधित थी। रासमें आये हुए स्थानों की नामा
એમ શ્રી આર્ય કલ્યાણગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ
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