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________________ इन संघों की समुचित व्यवस्था बाड़मेर अचलगच्छ जैन श्री संघ के साथ साथ दादाश्री कल्याणसागरसरि जैन मंडल द्वारा की जाती रही। आचार्यश्री गुणसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के उपदेश से बनने वाले चार जिन मन्दिरों की प्रतिष्ठा निमित्त विधिकार श्री सोमचन्दभाई-छाणीवाले और संगीतकार श्री खेतसीभाई नलिया वाले थे। इस अवसर पर प्राहोर से बालिकाओं की एक मंडली भी आई। जिनके सांस्कृतिक कार्यक्रम को. देखकर जनता झूम उठी । तीर्थङ्कर भगवान के जन्म कल्याण से केवलज्ञान तक के उत्सवों की भरमार रही स्थानीय जैन संस्थानों ने इन कार्यक्रमों में सक्रिय योगदान दिया और नाना प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। प्रतिष्ठा महोत्सव के इस शुभ अवसर पर बाड़मेर नगर के जैन बन्धुओं और बाहर से आये जैन बन्धुओं की उन्हें सात बार प्रभावना उनके घर घर जाकर वितरण की गई और इस कार्य में सम्पूर्ण जैन श्री संघ एवं जैन संस्थाओं और युवकों का उत्साह उत्साहवर्धक रहा। बाड़मेर तीर्थ के भगवान श्री पार्श्वनाथ जैन मन्दिर में बनने वाले चार नवीन मन्दिरों, चौमुखी श्री पार्श्वनाथ मन्दिर दादावाड़ी में करीबन २६ नवीन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया गया। जिसमें पांच देवी देवताओं की नवीन प्रतिमानों के साथ साथ १६ नवीन जिन प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित किया गया। एक प्राचीन श्री पद्मावती देवी एवं नीचे के श्री पार्श्वनाथ मन्दिर की मूल प्रतिमा को इस मन्दिर की चौमुखी मन्दिर में विराजमान किया गया । प्राचीन समय से नीचे का श्री पार्श्वनाथ मन्दिर इस बार भगवान महावीर के २५०० वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में भगवान महावीर के मन्दिर के रूप में परिवर्तित किया गया। जिसमें पांच जिन प्रतिमानों के साथ साथ पांच देवी देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान की गई एवं दादावाडी में श्रीपार्यरक्षितसरि, श्री जयसिंहसरि एवं बाड़मेर के पहाड़ स्थित श्री चितामरिण पार्श्वनाथ के जिन मन्दिर के उपदेशक दादाश्री धर्ममूर्तिसरिजी की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की गई। दि. १८-११-७६ से १-१२-७६ में इस तरह बाड़मेर नगर में पूज्य आचार्य श्री गुणसागरसरिजी द्वारा प्रेरित यह प्रतिष्ठा महोत्सव ऐतिहासिक बन गया। पू. साध्वी श्री प्रियंवदाश्री जी, पू. सा. श्री वनलताश्री जी एवं पू. सा. श्री इन्दुकलाश्री जी ने इस चातुर्मास में महिलाओं में तपश्चर्या की भावना प्रबल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बाड़मेर की जनता पूज्य आचार्यश्री के ऐतिहासिक चातुर्मास को कभी नहीं भूल सकती । प्रतिष्ठा महोत्सव के पश्चात् प्राचार्यश्री ने मुनिमण्डल सह जब कच्छ की ओर विहार किया तब विदाई समारंभ का आयोजन किया गया । इस समारोह में हजारों नरनारियां उपस्थित रहे। पूज्य श्री को विदाई से भक्तों की आँखों से अश्र धारा बहने लगी। इस समय किये गये प्रवचनों में वक्ताओं का सुर यही था कि "यह चतुर्मास युगयुगों तक इतिहास का संदर्भ पृष्ठ बना रहेगा।" बाड़मेर से बिहार कर पूज्यवर प्राचार्यश्री सांचोर, थराद, भाभर, राधनपुर, शंखेश्वर, मांडल, ध्रांगध्रा होते हुए कच्छ पधारे । कच्छ गोधरा से सं २०३३ महासुद ५ को आपकी निश्रा में कच्छपालितारण धारी संघ का मंगल प्रयारण हया । जय गुरुदेव ! 29) શાઆર્ય કરયાણાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથો NDSH Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012034
Book TitleArya Kalyan Gautam Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalaprabhsagar
PublisherKalyansagarsuri Granth Prakashan Kendra
Publication Year
Total Pages1160
LanguageHindi, Sanskrit, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size35 MB
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