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जैनकुमारसम्भव का वास्तविक सौन्दर्य तथा महत्त्व उसके वर्णनोमें निहित है । इनमें एक प्रोर कविका कवित्व मुखरित है और दूसरी ओर जीवनके विभिन्नपक्षों तथा व्यापारोंसे सम्बन्धित होनेके कारण इनमें समसामयिक समाजकी चेतना का स्पन्दन है । इन वर्णनों के माध्यमसे ही काव्यमें समाज का व्यापक चित्र समाहित हो सका है जो महाकाव्यके एक बहुअपेक्षित तत्त्वकी पूर्ति करता है । इसलिए जैनकुमारसम्भवसे तत्कालीन वैवाहिक परम्पराओं, राजनीति तथा भोजनविधिसे लेकर प्रसाधनसामग्री, प्राभूषणों, वाद्ययन्त्रों, समुद्री व्यापार, अभिनय, सामाजिक मान्यताओं, मदिरापान आदि कुरीतियोंके विषयमें महत्त्वपूर्णसामग्री उपलब्ध होती है । इस प्रकार जैनकुमारसम्भव साहित्यिक दृष्टि से उत्तम काव्य है, और इसमें युगजीवन की व्यापक अभिव्यक्ति
[ SAMBODHI] Vol.7
एगओ वरई कुज्जा, एगओ य पवत्तणं ।
असंजमे नियत्ति च, संजमे य पवत्तणं ॥ एक तरफ निवृत्ति और दूसरी तरफ प्रवृत्ति करना चाहिए-असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति ।
कोहो पाइं पणासेइ, माणो विणयनासणो ।
माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सम्वविणासणो । क्रोध प्रीति का, मान विनय का, माया मैत्री का, और लोभ सभी का नाश करता है।
उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे ।
मायं चऽज्ज्वभावेण, लोभं संतोसओ जिणे ॥ क्षमा से क्रोध को हरो, नम्रता से आदर को जीतो, सरल स्वभाव से ममता पर और सन्तोष से लोभ पर विजय प्राप्त करो।
કાDિS આ આર્ય ક યાણાગૌતમસ્મૃતિગ્રંથ
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