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हजारीमल बांठिया
की–केवल स्वान्त संतोष की दृष्टि से- ज्ञानोपासना की दृष्टि से यह मजूरी करता रहा हूं।
। यहाँ पर कई ग्रन्थों का काम एक साथ चल रहा है उन सबके प्र फादि देखने पड़ते हैं-रोज ३-३,४-४, फर्मों के प्रफ आते हैं उनका मूल से मिलान करना, ठीक करना आदि बड़ी झंझट है आपको इस काम के करने की तो कोई कल्पना है नहीं-यदि मेरे साथ दो महिने बैठकर इस काम का कुछ अनुभव कर लें तो फिर आपको ज्ञान होगा कि किस तरह काम किया जाता है। आप हर दफह लिखते रहते हैं कि वह छप गया होगा-वह छप गया होगा परन्तु इस छपने में किस तरह पिसना पड़ता है आकर देखिये और फिर कुछ ख्याल करिये-शरीर की इस क्षीण अवस्था में भी मैं १४-१४ घंटे यहां पर काम कर रहा हूं साथ में अमृतलाल, लक्षमण, रसिकलाल, प्रो० भायाणी वगैरह भी हैं परन्तु ये सब थक जाते हैं और मैं रात को १२-१२ बजे तक काम करता रहता हूं।
लिखते लिखते थकसा गया हूं और इसी बीच कई जने प्रागये ३-४ बज रहे हैं मैं अपनी जगह से हिला तक नहीं हूं-चाय भी यहीं बैठकर पी ली है-अब उठकर प्रेस में जाना है-सो अब यहीं खतम करता हूं मैंने सहजभाव से जो मन में आगया सो लिख डाला आप उस पर कोई गौर नहीं करें-हम समव्यसनी जो रहे।
जयपुर २१-४-५५
मेरी अांखें अब दिन प्रतिदिन क्षीण होती जा रही है इमलिये पत्रादि का लिखना कष्ट सा प्रतीत होता रहता है। जो कुछ थोड़ा बहुत काम हो सकता है वह कुछ व्यवस्थात्मक और संपादनात्मक रहता है ।
राजस्थान सरकार ने इस कार्यालय को जोधपुर ले जाना सोचा है-वहां पर इसके लिये नया भवन बनाने की योजना भी बनाई गई है और गत ता.१ अप्रेल को राष्ट्रपति के हाथों से उसका शिलान्यास भी किया गया है। xx मैंने तो गत फरवरी में सरकार को सूचित कर दिया था कि मैं अब इस कार्यालय के काम में अपना विशिष्ट योग देने में असमर्थ हो रहा हूं अतः मैं निवृत्त होता चाहता हूं पर मुख्यमंत्रीजी ने विशेष अनुरोध किया कि अभी इस कार्यालय को ठीक जम जाने दीजिये और इसे जमाइये-हम इस विषय में पाप चाहेंगे वैसा करने को तैयार हैं-इत्यादि ।
जोधपुर
३०-१२-६४ विल्हण चरित के विषय में आपने जो सूचना दी, उसके लिये आभार । x x मैं कल चित्तौड़ जा रहा हूं।
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