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[ हजारीमल बांठिया
वही होगा । मैं तो सिर्फ उदयाधीन कर्म का फल भोगने वाला हूँ। इतना तो निश्चित है कि जो कुछ समय इसमें जा रहा है वह लाभदायक न हो तो भी आत्मा को हानिकर तो नहीं है।
बम्बई ११-७-४६
मेरा ऐसा स्वभाव है कि जिस समय जिस कृति को लेकर बैठता है तब ही उसकी सब सामग्री का संकलन या तारण आदि करने की सूझ पड़ती है। पहले से ही अनेक ग्रन्थों की सामग्री तैयार करना असंभव है । जब जिस काम को शुरू किया जाता है तब ही उसकी विचारधाराएं प्रांखों के सामने अाकर उपस्थित होती हैं । यदि उसके बीच में कुछ व्यवधान आ गया तो फिर वह सब बिखर जाती है और स्मृति से भी निकल जाती है।
हमारे इस भवन के नये मकान का काम पूरा होने पर है। आगामी ८ अगस्त को श्रीमान् राज. गोपालाचार्य जी के हाथों इसका बड़े समारोह के साथ उद्घाटन होना निश्चित हुआ है। उसकी तैयारियां चल रही हैं । मकान बहुत भव्य और दर्शनीय बना है । बम्बई भर में एक प्रेक्षणीय स्थान बना है रुपया तो करीब २० लाख के खर्च हो जायेंगे।
आपके वहां भी आपका ज्ञान मंदिर बन गया है सो जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। आपके संग्रह में भारी सामग्री है उसे खूब रक्षा के साथ रखने की व्यवस्था प्रावश्यक थी ही। क्या भवन के उद्घाटन के समय यहां माने का विचार करेंगे ।
बीकानेर आने का आपका आमंत्रण तो बहत प्रिय लगता है लेकिन जब निकल पडू तब तो। इच्छा तो जरूर रहती ही है कि आपकी सब सामम्री को ठीक से देखू। फिर मन में यह पाता है कि अब देखकर भी क्या करना है-कार्यकाल अब प्रायः बीत चुका है।
नवरंगपुर २८-१.५०
मैंने प्रायः राजस्थान में कहीं डेरा डालने का निश्चय किया है और अभी तो कहीं चित्तौड़ के पास ही कहीं आसन जमाने का विचार है। गत वसन्त पंचमी के शुभ दिन में यह संकल्प उदयपुर में किया है। कहीं १५-२० बीघा जमीन का टुकड़ा लेकर उसी पर अपनी झोपड़ी बनाकर रहना अपनी आवश्यकता के लिये स्वयं अन्न उत्पन्न करना तथा एकान्त जीवन व्यतीत करना यही मुख्य लक्ष्य रहेगा। "सर्वोदय साधना आश्रम" के रूप में इसका नाम करण किया जायगा। वहां बैठे-बैठे जो भी सामाजिक सेवा निराकुल भाव से हो सकेगी उसके करने की थोड़ी बहुत प्रवृत्ति बनी रहेगी। साहित्यिक प्रवृत्ति से प्राय: मन उपरत हो रहा है। ४-५ अनाथ बालकों को लेकर मैं वहां झोंपड़ी बनाऊंगा और अपना आसन जमाऊंगा। यही मेरा प्रधान लक्ष्य अभी है।
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