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[ हजारीमल बांठिया
जैसलमेर
२६-१२-४२ हमारा यहां का काम खूब अच्छी तरह चल रहा है। साथ में ५ आदमी भी हैं जो नकलें वगैरह का काम कर रहे हैं। आपके अक्षर जरा बहुत गड़बड़ी वाले होते हैं। कल परसों लोद्रवा जाने का विचार है-श्री आचार्य महाराज भी आज जा रहे हैं।
बम्बई
५-७-४३
जैसलमेर के भंडार के ताड़पत्रीय पुस्तकों की रक्षा के लिए पेटियां बनानी बहुत ही आवश्यक हैं नहीं तो वे ग्रन्थ बहुत ही शीघ्र नष्ट हो जायेंगे उसके लिए हमारे दिल में उत्कंठा तो बहुत ही है पर उसमें जरूरत है कुछ उदार दिल के धनिकों की।
जैसलमेर के भाइयों के तथा अन्य ग्रामजन और श्री महारावलजी के साथ हमारा अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया है। उस विषय में कोई कहने की बात नहीं है। वे तो सब हम कहें वैसे खड़े पैरों करने के लिए तैयार हैं, पर जरूरत है बाहर से रुपयों के आने की ।
बम्बई
६-११-४३
मेरे पास ऐसे तो सैकड़ों काम पड़े हैं। कितना काम का ढेर है यह तो आप कभी प्रांखों से देखें तब कुछ पता लग सके। कितने ग्रन्थ छप रहे हैं-कितनों के प्रूफ पा रहे हैं-कितनों की कापियां आ रही हैं, कितनों की प्रतियां मंगाई और देखी जा रही हैं और उसके उपरान्त वहां भवन का कितना विशाल कार्य चल रहा है। आपकी कल्पना के बाहर की ये सब बातें हैं । १० प्रोफेसर मेरे नीचे काम कर रहे हैं, १२ एम. ए. पास स्कॉलर पी. एच. डी. की तैयारी मेरे गाइडेंस नीचे कर रहे हैं। बम्बई यूनिवर्सिटी ने तीन विषयों का एक साथ P. H. D. का रिकगनेशन मुझे दे रखा है जो आज तक किसी प्रोफेसर को नहीं दिया गया ।
इसके साथ अहमदाबाद की गु० व० सोसायटी के उच्च अभ्यास विभाग में मैं मुख्य परामर्शदाता
त्ति में मुझे पत्र लिखमा भी बड़ा कठिन हो जाता है। कई बड़े बड़े विद्वानों के दूर दूर से पत्र पाते हैं जिनका उत्तर महिनों तक नहीं दे सकता।
सामग्री तो बहत है, पर काम में सहायक हों ऐसे विद्वान व्यक्तियों का बड़ा अभाव है। अकेले हाथ से कितना काम हो सकता है।
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