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मुनिश्री जिन विजयजी की कहानी ]
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कोई यह कार्य प्रधान कार्य नहीं है-केवल अवकाश में करने जैसा शौक का काम है-पर मेरे लिये तो यह जीवन का प्रधान लक्ष्य बन गया है और इसीलिये शरीर की सर्वथा उपेक्षा करके, मृत्यु को निकट निकटतर बुलाता हुआ इसके व्यामोह में फंसा हुआ हूं। इस परिस्थिति को देखकर आपको धैर्य और प्रौदार्य रखना चाहिए । बाकी मेरे पास तो इतना साहित्य पड़ा है और सुलभ है कि इस एक जन्म में तो क्या २-३ जन्म तक भी पूरा नहीं हो सकता।
अहमदाबाद ३-४-४२
मात्मानन्द शताब्दी स्मारक फण्ड की तरफ से आगमों के प्रकाशन की कोई योजना सोची जा रही है। उसमें मेरी सलाह वगैरह की आवश्यकता है।
यहां पर पारणंदजी कल्याणजी ने मेरी प्रेरणा से जैन आकियोलॉजीकल डिपार्टमेंट खोलना लगभग निश्चय किया है और उसकी व्यवस्था मेरे ही निरीक्षण नीचे रखने का तय किया है।
आप मेरे काम के साहित्य को तो यथावकाश भेजते ही रहियेगा। आप ज्यों ज्यों लिखते हैं त्यों त्यों मेरा उत्साह बढ़ता जाता है और मैं पड़ा हुआ, बैठ कर खड़ा हो जाता हूं।
बम्बई
६-७-२२
भारतीय विद्या भवन का वह भव्य मकान जो अधेरी में २।। लाख रुपये के खर्च से बना है, सरकार ने मिलीटरी के रहने के लिये मांग लिया है। इसलिये हमको अपना यह विद्या भवन दूसरी जगह किराये के मकान में ले आना पड़ा है।
पो० साबरमती
१५-६-४२ जैसलमेर जाने की मेरी इच्छा तो बहुत उत्कट है पर देखू यह इच्छा कब पूर्ण होती है। अभी तो देश का मामला बड़ा गड़बड़ी में पड़ा हुआ है। ऐसे समय में कुछ काम करने में दिल नहीं लगता। एक महिने से यहां पर बैठा हूं। नित नये उलट पुलट समाचार और वारदात होते रहते हैं। लोगों के दिल बड़े क्षुब्ध हैं । यहां पर सवा महिने से बिलकुल सब काम धन्धे बन्द से हैं। मिलें सर्वथा बन्द हैं। बाजार भी बन्द हैं-स्कूल कालेज भी बन्द हैं। अभी इस गोलमाल में कुछ भी करने की सूझ नहीं हो रही है। मामला कुछ शान्त पड़े बाद ही सब व्यवस्था हो सकेगी।
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