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मुनीश्री जिनविजयजी की कहानी
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बम्बई
२७-११-४०
आजकल काम की बड़ी भरमार है । और आप जानते ही हैं देश में राजकारी विषय की बड़ी गड़बड़ी मच गई है। हमारी इस संस्था के संस्थापक मुशीजी भी जेल में जाने की तैयारी में हैं--सो भवन की पीछे की व्यवस्था कैम की जाय इस विषय में दिन-रात परामर्श करने में लगे रहना पड़ता है। मुझे आपका खजाना देखना है और वहां के विद्वान मित्रों से मिलने की भी बड़ी उत्कंठा है । देखें यह इच्छा कब पूरी होती है।
शायद मेरे जैसे से जो एक दफह चित्त उचट गया और इन पोथी पन्नों को फेंक दिया तो फिर जिन्दगी तक हाथ में लेने का जी नहीं होगा। आजकल भी मन को मैं बड़े जोर से दावे बैठा हं-सब साथी
और नेतागण जेल में जा रहे हैं और मेरे से यों कैसा बैठा जाय पर मुशीजी आदि बड़ा दबाव डालकर कह रहे हैं कि तुम जेल में गये तो फिर यह सारा साहित्य का काम बिगड़ जायगा और लाखों रुपयों का नुकसान होगा। अभी भा० वि० भ० में ८-१० स्कॉलर काम कर रहे हैं, वे सब निकम्में हो जायेंगे इत्यादि-सो मैं मन को मारकर इस काम में मर रहा हूं। इधर शरीर भी अब बड़ी परेशानी कर रहा है लेकिन सोच रहा हूं कि यदि काम बन्द हो गया तो फिर सदा के लिए हुआ समझिये। और सामग्री जो इतनी इकट्ठी हुई पड़ी है वह सब निरर्थक हो जायगी-खैर ।
हमारे पुराने यतिलोग साहित्य के क्षेत्र में कितना महान और अनेक विध कार्य कर गये हैं इस दृष्टि से ऐसे साहित्य का बड़ा उपयोग है और हमें अपने पूर्व पुरुषों की कृतियों को प्रकाश में रख कर अपना ऋण चुकाने का लाभ उठाना चाहिए ।
साबरमती, अहमदाबाद
२०.४.४१
मैं कुछ बीकानेर पाने की इच्छा से यहां पर रुक रहा-पर यहां पर पिछले ४ दिन से हिन्दु-मुसलमानों का बड़ा भयानक झगड़ा शुरू हो गया है जिससे सारा शहर प्रांतक से घिरा हुआ है । सब प्रकार का व्यवहार बन्द है और लूट-मार, प्राग प्रादि के भयंकर काम चल रहे हैं। जो जहां बैठा वह वहीं बैठा हुआ है। मकान में से बाहर निकलने की किसी की हिम्मत नहीं है । सो इस तरह मेरा मनसूबा जहां था वहीं रह रहा है। आप हैं इसलिए आने की बड़ी उत्कंठा बनी हुई है--पर कौन जाने विधि का क्या संकेत है ? मामला शात हो गया तो मंगल या बुध के दिन निकल आने का इरादा है-नहीं तो फिर पाना संभव नहीं। पाने के विषय में जो निर्णय होगा वह आपको सूचित कर दूंगा।
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