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आचार्य जिनविजयजी
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मना परिचितो ज जाणे छे । तेमनो प्रिय विषय प्राचीन गुजरातनो इतिहास अने भाषा अछे । तेने गे तेमणे जे जे ग्रन्थो छपावदा शरु कर्या तेमां तेमने जर्मन भाषाना ज्ञाननी ऊरप वहु ज सालका लागी संयोग मलतां अज तेमने वृत्तिन े तेमने जर्मनी जवा प्रोत्साहित कर्या । तेमना उत्साहने तेमना आत्मज्ञ विद्याप्रिय मित्रोनं वधावी लीधो । ओक बाजु मित्रो तरफथी प्रोत्साहन मल्युं ने बीजी बाजु खुद महात्माजी अमनी विदेश गमननी वृत्तिने सप्रेम सींची । दरमियान जर्मन विद्वानो ग्रहीं प्रावी गया । तेमनी साथे निकट परिचय थइ गयो । बीजी बाजु तेमनी ऐतिहासिक गवेषणाथी संतुष्ट थयेल प्रो० याकोबी तेंमने पत्र द्वारा जर्मनी आववा आकर्ष्या अने लख्यु के तमे जल्दी प्रावो । तमारी साथे मली हुं अपभ्रंश भाषामा अमुक काम करवा इच्छु छु ।
आ ते आंतरिक जिज्ञासा ने साहसनी भूमिका उपर बहारतु अनुकूल वातावरण रचायु प्रने परिणामे जैन साधुवेषनां रह्यां सह्यां चिन्होनु विसर्जन करी तेमणे अभ्यास माटे युरोपयोग्य नवीन दीक्षा लोधी ।
वाचक जोइ शकशे के आा बधां परिवर्तनोनी पाछल तेमनो ध्रुव सिद्धान्त विद्याभ्यास ज रह्यो छे । जैन तत्त्व ज्ञान मां का छे, के प्रत्येक वस्तुमा ध्र ुवत्व साथै उत्पाद प्रने नाश सकल येल छे । आपणे प्रा सिद्धान्त आचार्य जिनविजयजीना जीवनने प्रगे बरोबर लागु पडेलो जोइ शकी छी । छेक नानी उमरथी प्रत्यार सुधीमां तेमनां क्रांतिकारी अनेक परिवर्तनोमां तेमनो मुख्य प्रवर्तक हेतु क ज रह्यो छे, अने ते पोताना प्रिय विपयना अभ्यासनो । ओ तो कोइ परण समजी शके तेम छे के जोते श्री ग्रेक ने ग्रेक स्थिति मां रह्या होत तो जे रीते तेमनु मानस व्यापक परणे घडायेलु छे ते कदी न घडात श्रने अभ्यासनी धरणी बारी श्रो बंध रही जात, अथवा सहज विकासगामी संस्कारो गूगलाइ जात ।
आज काल नी सामान्य मान्यता छे के उच्च अभ्यास तो युनिवसिटीनी कोलेजोमा अने ते परण अंग्रेजी प्रोफेसरोनां भाषणो सांमलीने ज थइ शके; श्रने प्रतिहासिक गवेषरणा तो श्राप पश्चिम पासेथी शीखी तो ज शीखाय । आचार्य जिनविजयजी कोइ परण निशाले पाटी पर धूल नाख्या वगर हिन्दी, मारवाडी, गुजराती, दक्षिणी भाषाप्रोमा लखी-वांची बोली शके छे अने बगाली पण तेमने परिचित छे । ग्राटली नानी वयमां तेम बीसेक ग्रंथो संपादित कर्या छे । प्राच्यविद्यापरिषदमा 'हरिभद्रसूरिनो समय निर्णय' से उपर अंम
क लेख वांच्यो जेथी प्रखर विद्वान याकोबीने परण पोतानो अभिप्राय आयुष्यमां पहेली ज वार बदलाववो पड्यो छे । जूना दस्तावेजो, शिलालेखो, संस्कृत, प्राकृत के जूनी गुजरातीना गमे ते भाषाना लेखो ते प्रो उकेली शके अने विविध लिपिनो तेमने बोध छे । खारवेलनो शिलालेख बेसाडवामां प्रो० जयस्वाले प तेमनी सलाह अनेक बार लोधी छे । तेमने शिल्प अने स्थापत्यनी घरणी माहिती छे । पर्यटन करी ने पश्चिम हिन्दनी भूगोलनू तेमने ग्रेव सारु निरीक्षण कयुं छे के जाणे जमीन तेमने जवाब देती हासना बनावो तेमाथी उकेली शके छे । पुरातत्त्वमां पण तेमणे श्रेक प्राचीन गुजराती संपादित कर्यो छे । उपरांत गुजरातना इतिहासनां साधनोना ग्रंथो बहार पाडवा मांड्या छे, जे काम तेस्रो जर्मनी जई प्राव्या पछी बधारे वेग थी प्रागल चलावशे ।
होय तेम तेस्रो इतिभाषनो 'गद्यसंदर्भ'
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