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डॉ. प्रभाकर शास्त्री
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"राज्ञी तस्य मनोज्ञलक्षणयुतं सूनु विशालेक्षणा वर्षान्तक्षणदा पतिधु तिभरा भूरक्षिरणः सत्क्षणे । विक्षीणीकृतं दीप दीप्तिमतुलं दत्तक्षणं वीक्षिणां
भूरक्षा सुविचक्षणं प्रसुषुवे पद्म क्षणं कीलनम्" ॥७५६।। १०. महाराज कोल्हणजी (पोष कृ० ६ सं० १२७३ से कार्तिक कृ० ६ सं० १३३३ तक)
श्री कील्हरणजी के समय चित्तौड़ तथा मालवा, गुजरात में बड़े शक्तिशाली शासक थे। ये उनके पास कुम्भलमेर रहा करते थे। यह 'वीर-विनोद' तथा 'महाराणा रायमल्ल के रासे' में लिखा है। इनके दो रानियां थीं जिनसे ६ पुत्र हुए थे । ज्येष्ठ पुत्र का नाम 'कुन्तिल' था जो उत्तराधिकारी बने थे।
"जयपुर का राज्यवंश" (हितैषी जयपुर-अंक, पृ० ५५) तथा “जयपुर का इतिहास" (नाथावतों का इतिहास) पृ० २६।३० पर लिखा है
___ "इनके एक राणी भावलदे निर्वाणजी खंडेला के रावत देवराज की। इनके कुन्तलजी हुए । दूसरी राणी कनकादे चौहाणजी। इनके २ पुत्र हुए।" ।
इस अवतरण से दो रानियां होना तो सिद्ध होता है, परन्तु पुत्रों की संख्या ३ ही बनती है । "वीर-विनोद" में ३ पुत्रों का उल्लेख इस प्रकार है
"१. कुन्तलजी-राज पायो। २. अखैराज-जिसके वंशज धीरावत कहलाते हैं । ३. जसराजजिनके टोरडा और बगवाड़ा के जसरा पोता कछवाहा कहलाते है।
केवल एक वंशावली में ६ पूत्रों का उल्लेख है, जिनमें तीन नाम तो 'वीर-विनोद' के है ही, इनके अतिरिक्त (४) सैबरसी (५) दैदो तथा (६) मंसूड और हैं । मंसूड के वंशज टांट्यावास के बंधवाड़ कछवाहे हैं। यहां काव्य में ६ पुत्रों का उल्लेख इस प्रकार है
"रेमेऽसौ रमणीद्वयेन रहसि श्रीमानुतीशद्य तिभूमि भूरि जुगोप जिष्णु विभवो विष्णु स्त्रिलोकीमिव । षड्नुस्सनृपो निहत्य च रिपूनाराध्यं देवो भवे
लब्ध ज्ञान महोदयो द्विजवराल्लेभे दुरायं पदम्" ।।७५८।। उपयुक्त विवेचन से सिद्ध है कि श्री कुन्तलजी ज्येष्ठ पुत्र थे। ११. महाराज कुन्तलदेवजी (कार्तिक वदि ६ सं० १३३३ से माघ कृ० १० स० १३७४)
इन्होंने आमेर में 'कुन्तल किला' बनवाया था, जो आज 'कुन्तलगढ' के नाम से प्रसिद्ध है । इनके ५ रानियां तथा १३ पुत्र थे । 'जयपुर के इतिहास'-पृष्ठ ३० पर लिखा है
_"इनके राणी (१) काश्मीरदेजी, चौंडाराव जाट की बेटी (२) रैणादे (निर्वाणजी) जोधा की बेटी, (३) कनकादे (गौडजी) (४) कल्याण दे (राठोडजी) वीरमदेव की बेटी और (५) बडगूजरजी पूरणराव की बेटी थी।"
वंशावली की एक प्रति में पूत्रों के नाम इस प्रकार हैं
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