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पृथ्वीराज विजय-एक ऐतिहासिक महाकाव्य "तस्यारीन् बलिनो बजितवतो द्राङ मालन्वेद्र।दिकान् कीर्तिदिग्वलयं च कारधवलं ज्योत्स्नेव भूयुज्ज्वलाः । षड्भार्यस्य बभूबुरुग्रमहसो द्वात्रिंशदात्मोद्भवाभावज्ञा भुज वैभवाजितधना धन्यं च तं चक्रिरे" ||७४६।।
८. महाराज बीजलदेवजी (फाल्गुन शु० ३ सं० १२०३ से आषाढ शु० ४ सं० १२३६)
इनके जीवन की कोई उल्लेखनीय घटना नहीं है। इनके समय में विद्वानो का बडा सम्मान था। इनके समय में अनेक ग्रन्थों का निर्माण भी हना होगा, परन्तु अभी तक पता नहीं चल सका है । इस काव्य में लिखा है
"स्वर्याते जनके, पदेस्य बिजलो ज्यायान्सुनो मंत्रिभिः नीतिहरुपवेशितो मतिमतां मान्यो बभूवीजसा । दीप्तो बह्निरिव द्विषां विषधरो गर्तोन्दुरूणामिव श्रीदोर्दण्डधरो विदामविदुषां जिष्णुजिगायाहितान्" ।।७५०।। "विद्वद्भिर्धनदानमानिततया सुप्रीत चित्तं शं बालानां कुलयांबभूव कलया वोधाय शब्दावले । ग्रन्थं सुग्रथितं विभक्ति गुरिणतर्बोध्यः समासादिभिः धीमानुद्ध तिवजितोजितयशा राजा जुगोपावनिम्" ।।७५१।।
इनके तीन पुत्र हुए थे, जिनमें ज्येष्ठ पुत्र का नाम श्रीराजदेव था। उसे राज्य सोंपकर श्रीबीजलदेव दिव्य धाम चले गये
"भुक्त्वासौ चिरमत्र मन्त्रचतुरैद्वित्ररमात्यै तो राज्ये दुर्जयतां गते जितरिपुश्शर्माणि भौमानि सः । दिव्यं धाम जगाम भीमवपुषे राज्यं प्रदाय स्वक पुत्राय प्रतिजिशत्रु जयिने तज्ज्यायसे भूपतिः" ।।७५२।।
६. महाराज राजदेव (प्राषाढ शु० ४ सं० १२३६ से पौष कृ. ६ सं० १२७३)
इन्होंने आमेर का जीर्णोद्धार किया था। अपने दोनों भाइयों के साथ प्रेम पूर्ण रहते हुए इनका समय भगवान् अम्बिकेश्वर महादेव की पूजा में बीता था। इनके ६ पुत्र थे जिनमें श्री कील्हणजी सबसे बड़े थे। इस काव्य में लिखा है
"मातृभ्यांमुदितो भृवं स बुभुजे श्री राजदेवो दिवा सस्पर्द्धामिव संविधाय नगरीम् आम्बेरिकामम्बिकाम् । संपूज्यायितमाम्बिकेश्वर महादेवेश्वरौ मां युवां सन्मातापितरौ प्रयातमितितौ (?) संप्रार्थ्य तस्थौ पुरः" ||७५३।।
श्री कील्हण के जन्म का वर्णन करते हैं
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