SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भंवरलाल नाहटा, २७५ ] संवत चवद चौमाल मां, देहरै प्रतिष्ठा कीध । महियो मेरो मेघा तणा, तिण जग माहे जस लीध भ०॥४॥ देसी प्रदेसी घणा, आवै लोक अनेक । भाव धरी भगवंत ने, वांदे अधिक विवेक ॥भ०॥६॥ खरच द्रव्य घणा विहां, राउ राणा तिरण वार । मानत मानै लाखनी, टालै कष्ट अपार भ०॥७॥ निरधणीमानै धन दियै, अपुत्रियां नै पुत्र । रोग निवारै रोगीमा, टाल दालिद्र दुख ।।भ०।।८।। ढाल-१५ घर आवोजी प्रांबो मोरीयो-ए देशी आज अम घर रंग व धामणा, आज तूठा श्री गौड़ी पासो । आज चिंतामण प्रावी चढ्यो, आज सफल फली मन आसो ॥०॥१॥ आज सुरतरु फल्यो प्रांगणे, आज प्रगटी मोहन वेलो। आज विछडीया वाहला मिल्या, आज अम घर हई रंग रेलो।।प्रा०॥२॥ आज अम घर प्रांबो मोरीयो, आज बूठो सोवन धार । आज दूधे बूठा मेहला, आज गंगा प्रावी घर बार ॥प्रा०॥३॥ श्रीहीर विजय सूरीश्वरू, तस शुभ विजय कवि सीस । तेहना भाव विजै कवि दीपता, तेहना सीध नमु निशदीसो प्रा०॥४॥ तेहना रूप विजै कविराय ना, तेहना कृष्ण नमु करजोड़ि। वली रंग विज रंगे करी, हुतो प्रणपत करु' कर जोड़ि |प्रा०॥शा आज गायो श्री गौड़ीपुर धणी, श्री संघ केरै पसाय । चतुर चौमासू की चुप सु, गामते महियल मांह प्रा०॥६॥ संवत अठारै सतलोत्तरे, भाद्रवा मास उदार । निथ तेरस चन्द्रवास रै इम नेम विजय जै जैकार प्रा०॥७॥ इति श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी स्तवनम् संपूर्णम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy