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भंवरलाल नाहटा
मन
निसि. भर सूता जाँह, जक्ष प्रावी ने त्यांह, सुहणे इम कहै ए, सघलु सरदहै ए :।६।। तरक तण छे धाम, तेह नै धर जइ ताम, पांचसै रोकड़ा ए, देजे दोकड़ा ए। देसे प्रतिमा एक, पास तरणी सुविवेक, तेह थी तुझ थास्ये ए, चिंता दूर जास्य ए ॥७॥ संभलावी जक्ष्यराज, तुरक भरणी कहै साज, प्रतिमा तु देजे ए, पांच से धन लेजे ए। इम करतां परभात, तुरक भणी कहै वात, मन मां गहगह्या ए, अचरज कुण लहै ए ।।८।।
ढाल-४ आसरा रा रे जोगी, ए देशी तरक भणी दियै पांच से दांम, प्रतिमा प्राणी ठाम रे । पास ने तूठा पुजे प्रतिमा हरख भरागो, भाव प्राणी ने खरचो नाणो रे । पासजी मुने तूठा ॥१॥ मुझ वखते ए मूरत प्रावी, मूने आपस्यै दाम उपावी रे ।पा। दाम देई निरू तिहां लीधु, मन मान्यु कारज कीधु रे ।पा०॥२।। रूना भरीया ऊंटज वीस, ते मांहि बैसारचा जगदीस रे ॥पा०॥ अनुक्रमे चाल्या पाटण मांहि थी, साथै मूरत लेइ नै तिहाँ थी रे ।।पा०।।३।। मली सह दाणी विचारै मन में, एतो कोतक दीस इण में रे ।।पा०।। मेघा सा नै दाणी पूछ, कहो सेठ जी कारण स्यूछ रे ॥पा०॥४॥
आगल राधरणपुर सह पाव्या, दारण लेवा दागी मिली पाव्या रे ।।पा।। गणे गणे उंट नै भूल भूलै लेखू, एक प्रोछो अंक अधिको देखू रे ।।पा०॥५॥ सा मेघो कहै सांभल दांगी, अमे मुरत गोडीजीनी प्राणी रे ॥पा०॥ ते मूरत ए बरकी मांहे, किम जालवीए बीजे ठामी रे ॥पा०।।६।। पारसनाथ तणं सुपसाई, दाण मेली दाणी घर जाये रे पा०॥ जात्रा करीनि सह घर आवै, जिन पूजी नै पाणंद पावै रे ॥पा०॥७॥ तिहां थी पाव्या पारकर मांहे, भूधेसर नगर छै ज्याँही रे ।।पा०।। वधामणी दीधी जिण पुरषै, थया रूलियाइत घणु हरखै रे ।।पा०॥।।
__ ढाल-५ राणपुरो रलयामणो रे लाल संघ पावै मली सामठा रे लाल, दरसरण करवा काज; भवि प्राणी रे । ढोल नगारा ढल ढलै रे लाल, नादे अंबर गाज ।भ०॥१॥
सुगजो बात सुहामणी रे लाल । उछव महोछव करे धरणा रे लाल, भेट्या श्री पारसनाथ भ०। पूजा प्रभावना करे घणा रे लाल, हर्ष पाम्या सहु साथ भासु०॥ संवद चउदै बत्रीस में रे लाल, कात्तिक सुद नी बीज ।भ०। थावर वारे थापीया रे लाल, नरपति पाम्या रीझ भ०॥३॥सु०।। एक दिन काजलसा कहै रे लाल, मेघासा नै वात भ०। नारण अमारू लेई करी रे लाल, गया हुंता गूजरात-भ०॥४॥सु। ते धन तुमे किहां वावरच रे लाल, ते दयो लेखो आज ।भ०।
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