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श्री गौड़ी पाश्वनाथ तीर्थ
मनसू बीहनो तूरकडो थाये आकलो आगल जे थाइ वात भवि जन सांभलो ॥ ८ ॥
ढाल-२ देशी १ मांहरा धणुसवाई ढोला। २खंभाईत देशे जाजो, खंभाईति चुडला लाइजोरे माहरां सगबरू लाख जोयण जब परमाण, तेमां भरत खेत्र परधान रे।
माहरा सुगण सनेही सुणज्यो । पारकर देस छै रूडो, जिम नारि नै शोभे चूडो रे मां०॥१॥ शास्त्र मांहि जिम गीता, तिम सतीयां मांहि जिम सीता रे मां०।। वाजिन मांहि जिम भेर, तिम परबत मांहि मोटो मेर रे ॥मां०॥२॥ देव मांहि जिम इद, ग्रहगरण माहे जिम चंद रे ॥मां०॥ बत्रीस सहिस तिहां देस (भूछे) तेमां पारकर देस विसेस रे ।।मां।।२।। भूधेसर नांमि नयरी, तिहां रहिता नथि कोइ बेरी रे मा०।। तिहां राज करे खंगार, तेतो जात तणो परमार रे ॥मां०॥४।। तिहां वणज करै रे व्यापारी, तसु अपछर सिरखी नारी रै॥मां०।। मोटा मंदिर परधाम, तेतो चवदैसे बावन रे ।मां०॥५।। तिहां काजल सा व्यवहारी, सहु संघ में छे अधिकारी रे ।।मां०॥ ते पुत्र कलित्र परिवार, तसु मानत छै दरबार रे ॥मां०॥६॥ ते काजल सा नी रे बाई, सा मेघो कीधो जमाई रे ।।मां०।। एक दिन सालो बिनोइ, बैठा बात करंता एहवी रे मां०।७।। इहां थी धन धणो लेइ, जइ ल्यावो वस्तु केइ रे ॥मां०।। गुजरात मांहे तुम जाज्यो, जिम लाभ आवै ते लाज्यो रे ॥मां०।।८।।
ढाल-३ पांचम तप भणु रे--ए देशी सा काजल कहै वात, मेघा भरिण दिन रात, सांभली सद्द है ए, वलतु इम कहै ए
जाइस हूं परभात, साथ करी गुजरात, सुकन भला सही ए, तो चालु वही ए ।।१।। धन घणो लेई हाथ, परिवारी करि साथ, कंकु तिलक कीयो ए. श्रीफल हाथ दीयो ए। लेई ऊंट कतार, आव्यो चोहटा मझार, कन्या सनमुख मलीए, करती रंगरूली ए ॥२॥ मालण आवी जाम, छाब भरी छै दाम, वधावै सेठ भणी ए, पासीस आपे धणी ए। मच्छ जुगल मल्यो खास, वेद बोलतो व्यास, पत्र भरी जोगणी ए, वृषभ हाथे धणी ए ॥३॥ डावो बोले सांड, दधि नु भरीउ भांड, खर डावौ खरोए,. .....................। पागल पाव्या जाम, मारग बूठा ताम, भेरव जिमणी भली ए, देव डावी वली ए ॥४:। जिमणी रूपा रेल, तार वधी तेहनी वेल, नीलकंठ तोरण कीयो ए, उलस्या अती हीयो ए। हनुमंत दीधी हाक, मधुरो बोले काग; लोक कहै सहु ए, काम होस्यै बहु ए ॥५॥ अनुक्रम चाल्या जाय, आव्या पाटण मांहि, उतारा भला किया ए, सेठजी पाविया ए।
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