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स्वयंभू कृत : 'रिट्ठणेमि चरिउ' माथी पच्चीश देश्य शब्दो
जेम जेम वधु प्रमाणमाँ अने वधु जूनुं प्राकृत अपम्रश साहित्य सुलभ थतुं जाय छे तेम तेम प्राकृत-अपभ्रशना शब्दो अने प्रयोगो पर वधू प्रकाश पडतो जाय छ। [हेमचन्द्राचार्य नोंधेली देश्य सामग्रीनी स्पष्टता थती जाय छ,] तेम पूर्व प्रकाशित ग्रथोमाना विरल के संदिग्ध प्रयोगो समझाता जाये छ ।
अहीं उपलव्धमां प्राचीनतम कही शकाय तेवा अपभ्रंश महाकवि स्वयंभूदेवना अद्यावधि अप्रकाशित 'रिठ्ठगोमिचरिउ' के 'हरिवंशपुराणं' श्रे बृहत् काव्यना शरुअातना दस बार अंधिमाथी थोडाक प्रयोगो विशे नोंध आपुछु । आमाटे भांडारकर प्राच्य विद्या मंदिरनी हस्त प्रत संग्रहनी ग्रेक हस्त प्रतनो उपयोग करयो छ । प्रतनो उपयोग करवा देवा माटे हुं ते संस्थानो ऋणी छु । १. अवकख 'चिता'
___जन्म्या पछी शिशु कुष्णने 'पूतना वगेरे दुष्ट सञ्वोने सीधा करवा केटला दिवस राह जोवी पडशे ?' ग्रेवी चितामां ऊंघ नथी प्रावती । प्रेरीतनी कल्पना करतां कवि कहे छ:
कण्हहो नी सामग्गि-प्रवकख श्रे निद्दण श्रेइ रणंगरण-कंख से
(५-१-१) 'रणसंग्राम झंखता कृष्णने युद्धनी सामग्री न होवानी चिंतामा निद्रा नथी आवती।'
स्वयंभूना 'पउमचरिउ' मां पण ा शब्दनो अक प्रयोग छ । सीताने आश्वासन प्रापतां विभीषण समभावपूर्वक तेनी अोलख पूछे छेते प्रसंगनी ग्रेक पंक्ति या प्रमाणे छ :
कासु धीय कहि को तुम्हहं पइ अवख वहंतु विहीसणु जंपइ
(४२-१-२) 'कहे त कोनी पुत्री छे ? तारो पति कोण छ ?' सचित जाने लो विभीषण पूछयु । टिप्पणमां 'अवख वहंतु' नो अर्थ 'चिन्तावान्' करे लो छ । 'प्रकचक्ष' उपरथी देश्य 'अवयकख्', 'अवकख्' ( = जोवू देख भाल करवी) ग्रेना उपरथी या शब्द थयानी संभावना छ । सरखावो 'भालवु' अने 'संभालवु' । २. कूडागार 'खडकलो' प्राकृत कोशोमां 'कूडागार' नो 'शिखरना आकार नु घर' के 'शिखर उपरनु घर' अवा अवा
ठ. मां 'उपर शिखर के टोच नीकली होय से रीते करे लो खडकलो' अवा अर्थमां ते मले छ :
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