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प्राचार्य श्री जिनविजयमुनि
[ १३ भी बड़े पैमाने पर चालू हुआ। मुनिजी के अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप इस कार्य को स्थायित्व देने की दृष्टि से राजस्थान सरकार द्वारा जोधपुर में एक नवीन भवन का निर्माण किया गया। उसका उद्घाटन राजस्थान के मुख्यमन्त्री श्री मोहनलाल सुखाडिया द्वारा १९५८ में हुआ। यह संस्थान प्राज राजस्थान में ही नहीं सारे देश में भारतीय विद्या और पुरातत्व सम्बन्धी हस्तलिखित तथा मुद्रित ग्रन्थों का विशिष्ट केन्द्र माना जाता है और इसके प्रकाशनों को इस क्षेत्र में विशिष्ट प्रतिष्ठा तथा प्रादर प्राप्त है। इनमें से प्रत्येक पर मुनिजी के ज्ञान तथा अध्ययन, शोध और परिश्रम की छाप है। मुनिजी १६६७ में इस संस्थान के सम्मान्य संचालक के उत्तरदायित्व से मुक्त हुए।
मुनिजी ने जिस सर्वोदय साधना पाश्रम की स्थापना १९५० में की थी उसे सन्त विनोबा की राजस्थान की पदयात्रा के अवसर पर चन्देरिया आने पर अपित कर दिया । वह आश्रम अब एक पंजीकृत समिति द्वारा चलाया जा रहा है। मुनिजी ने आश्रम के सामने की जमीन पर अपना अलग निवासस्थान बना लिया है । वहां वे अब रहते हैं। वहीं मुनिजी ने सर्व-देवायतन के नाम से एक मन्दिर बनाया है जिसमें वैदिक, जैन तथा बौद्ध सभी देवी-देवताओं की स्थापना की है। यह मन्दिर मुनिजी की धार्मिक दृष्टि की विशदता और सर्व-धर्म-समभावना का बहुत सुन्दर और व्यावहारिक प्रतीक है।
मुनिजी की अवस्था अब लगभग ८३ वर्ष की है । उनका स्वास्थ्य काफी कमजोर हो गया है, अांखों की दृष्टि भी मन्द पड़ गई है। पर अब भी भारतीय पुरातत्व, जैन दर्शन और राजस्थान तथा चित्तौड़ के प्राचीन गौरव के प्रति उनकी आस्था और अध्ययन की ओर रुचि कम नहीं हुई है । ज्ञान और कर्म को जोड़ने को जिस दृष्टि ने उन्हें राजस्थान पुरातत्व मन्दिर के साथ सर्वोदय साधना पाश्रम स्थापित करने, चलाने और बढ़ाने को प्रेरित किया था वह आज भी कायम है। विद्वानों के साथ ज्ञान-चर्चा वे जितने उत्साह और गहराई से करते हैं उतनी ही रुचि वे कृषि और बागबानी में भी लेते हैं ।
मुनिजी का चित्तौड़ के प्रति बहुत गहरा आकर्षण है और उसका विशेष कारण चित्तौड़ के त्यागबलिदान की अत्यन्त गौरवपूर्ण गाथा तो है ही, साथ ही उसके ज्ञान के प्राचीन केन्द्र होने के कारण भी उन्हें यह प्रिय है । यहीं के महान् जैन विद्वान् और प्राचार्य हरिभद्र सूरि के जीवन और रचनाओं के प्रति मुनिजी की आस्था बड़ी गहरी है । उनके ग्रन्थों तथा जीवन के सम्बन्ध में मुनिजी ने बहुत खोज की है तथा उनके विशाल, उदार तथा व्यापक दृष्टिकोण के वे बड़े प्रशंसक हैं। मुनिजी ने चित्तौड़ के दुर्ग के सामने ही जमीन प्राप्त करके हरिभद्र सूरि स्मारक मन्दिर की स्थापना की है जो चित्तौड़ का दर्शनीय स्थान बन गया है। वहीं उन्होंने भामाशाह की स्मृति में एक भामाशाह भारती-भवन का निर्माण किया है ।
मुनिजी ने अपने जीवन-काल में अनेकों संस्थानों की स्थापना की है, पर अब स्वयं अपने आप में एक संस्था हैं जो विद्वानों और कार्यकर्ताओं दोनों की प्रेरणा के प्रखंड स्रोत हैं। मुनिजी चिरायु हों।
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