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राजस्थान भाषा पुरातत्व
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५. अपभ्रश में राजस्थानी के मूलतत्व :
पाभीरोक्ति से विकसित होकर अपभ्रंश देश की प्रधान भाषा हई और उसमें साहित्य रचना होने लगी। अपभ्रश के विकास और प्रसार का प्रधान श्रेय आभीरों तथा गुर्जरों को दिया गया है। आभीरों तथा गुर्जरों का प्रसार उत्तर में सिन्धु और सरस्वती के तट से४७ तथा सपादलक्ष४८ की ओर से गुजरात और राजस्थान में हा। पूर्व४६ तथा दक्षिण५० तक उनके राज्य भी स्थापित थे। राजशेखर का पश्चिमेन अपभ्रंशिनः कवयः' इस तथ्य का प्रमाण है कि गुजरात और राजस्थान में अपभ्रश काव्य का चरम विकास हुप्रा । अपभ्रश काव्य के प्राप्त ग्रन्थों के द्वारा इस प्रमाण की पुष्टि भी होती है। इसी पश्चिमी या शौरसेन अपभ्रश से राजस्थानी भाषा का विकास हुमा । राजस्थानी का प्राचीनतम रूप पुरानी राजस्थानी के ग्रन्थों में सुरक्षित है। पुरानी पश्चिमी राजस्थानी५१ को पुरानी हिन्दी भी कहा है।५२ इसका कारण भी यही है कि हिन्दी के वर्तमान रूप की रचना में पुरानी राजस्थानी का प्रबल आधार है । इसके कुछ उदाहरण ऊपर दिये भी जा चुके हैं।
हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत व्याकरण में एक अध्याय अपभ्रंश व्याकरण का भी दिया है। यहाँ उसी व्याकरण से कुछ ऐसे तत्वों को प्रस्तुत किया जा रहा है जो राजस्थानी के रचना विकास के मूल में प्राप्त होते हैं । कोष्ठकों में सूत्र-संख्या दी गई है)
४७--विलसन ने 'इन्डियन कास्ट' में आभीरों के विषय में लिखा है--'प्रारम्भ में उल्लेख महाभारत में शूद्र
के साथ मिलता है, जो सिन्ध के तट पर निवास करते थे ।..." तोलोमी (Ptlomy) ने भी 'पाबीरों' (आभीरों) को स्वीकृत किया है, जो अब भी आभीरों के सिन्ध, कच्छ और काठियावाड़ में मिलते हैं और ग्वालों तथा खेती का कार्य करते हैं।' रामायण, विष्णुपुराण, मनुस्मृति प्रादि ग्रन्थों में द्रविड़, पुण्ड, शबर, बर्बर, यवन, गर्ग आदि के साथ
प्राभीरों का भी उल्लेख मिलता है। ४८-(१) देखो-ग्रियर्सन का भाषा सर्वे जिल्द ९, भाग २, पृ० २ तथा ३२३. (२) देखो-इन्डियन एन्टीक्वेरी १९११ में डा० भण्डारकर का लेख 'फोरेन एलिमेन्ट इन दी हिन्दू
पोप्यूलेशन' -पृ० १६. (३) देखो-पार० ई० ए-थोवन कृत 'ट्राइब्ज एण्ड कास्ट्स् आफ बोम्बे' भूमिका पृ० २१. ४६-देखो-समुद्रगुप्त का इलाहाबाद का लेख । ५०--देखो--संवत् ३८७ का नासिक गुफा का शिलालेख जिसमें राजाशिवदत्त के पुत्र ईश्वरसेन अहीर का
उल्लेख है। ५१-देखो-इन्डियन एन्टीक्वेरी १६१४ के अंकों में तिस्सेतोरी कृत पुरानी पश्चिमी राजस्थानी पर
'नोटस'। ५२-देखो--नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग २, अंक ४ में 'गुलेरी' लेख 'पुरानी हिन्दी ।'
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