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विद्यापति : एक भक्त कवि
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विदग्ध गीतकार ठहराती है। गीति काव्य की दृष्टि से हम उन पर अन्यत्र विचार करेंगे। यहां उनकी पदावली के प्राधार पर हम उनका व्यक्तित्व निर्धारित करना चाहते हैं ।
विद्यापति के पदों को प्रमुख रूप से हम तीन भागों में बांट सकते हैं१-शृंगारिक २-भक्ति रसात्मक तथा ३-विविध विषयक पद
विद्यापति के जितने पद राधाकृष्ण के वर्णन सम्बन्धी अथवा नायक नायिकाओं पर लिखे गए हैं, सब शृंगारिक हैं। महेशवाणी, नचारियां दुर्गा गौरी तथा गंगा से सम्बद्ध पद दूसरी श्रेणी में एवं प्रहेलिका कूट आदि पद और शिव सिंह युद्ध वर्णन तृतीय श्रेणी के अंतर्गत आते हैं ।
____ इन सभी पदों को लेकर विद्वानों ने उनके लिए एक भारी विवादास्पद प्रश्न यह खड़ा किया है कि क्या विद्यापति भक्त कवि थे या शृगारिक ? अब तक इसी प्रश्न को लेकर आलोचकों ने कई पुस्तकें लिखी हैं और इन पदों के आधार पर सबने यही निर्णय लिया है कि विद्यापति घोर शृगारिक कवि थे।
डॉ० रामकुमार वर्मा लिखते हैं -"विद्यापति के भक्त हृदय का रूप उनकी वासनामयी कल्पना के आवरण में छिप जाता है। उन्हें तो सद्य स्नाता और क्यः सन्धि के चंचल और कामोद्दीपक भावों की लड़ियां गूथनी थीं । वयः सन्धि में ईश्वर से सन्धि कहां ? सद्य स्नाता में ईश्वर से नाता कहां ? अभिसार में भक्ति का सार कहां? उनकी कविता विलास की सामग्री है, उपासना की साधना नहीं।"
डॉ० वर्मा जैसे प्रबुद्ध पालोचक ने विदित नहीं यह निर्णय किस आधार पर लिया है । इस सम्बन्ध में हमारा उनसे गहरा मतभेद है ।
श्री विनय कुमार सरकार, श्री रामवृक्ष बेनीपुरी, गुणानन्द जुयाल, श्री कुमुद विद्यालंकार-सभी ने उनके भक्त होने में बाधा उपस्थित की है। श्री विद्यालंकार कुमुद लिखते हैं:-"ध्यान पूर्वक विचार करने से संधिकाल के परम रसिक कवि विद्यापति को भक्त कवि की श्रेणी में रखना केवल भ्रम ही नहीं कवि के साथ अन्याय भी होगा। निश्चय ही कवि ने राधाकृष्ण के नामों का उपयोग भक्ति के लिए नहीं किया है।"
आलोचकों के उक्त सभी निष्कर्षों से हमारा मतभेद है । हम नहीं समझते कि इन विद्वानों ने तटस्थ होकर तथा विद्यापति का गहराई से अध्ययन कर यह निर्णय दिया हो। वास्तव में विद्यापति को घोर शृंगारिक मानना उनकी अन्तःचेतना, व्यक्तित्व, उनके दर्शन तथा पृष्ठभूमि जन्य सभी मूल तत्वों की भारी अवहेलना होगी।
विद्यापति भक्त थे या शृगारिक इसको समझने के लिए हमें उनके विचार-दर्शन, अंतःचेतना की पृष्ठभूमि, जीवन के मूलतत्व तथा उनके पूर्ववर्ती साहित्य की परंपरा का अध्ययन करना होगा । हम समझते हैं, आलोचकों ने उन्हें घोर शृगारिक ठहराने के अब तक जो भी निर्णय लिए हैं वे केवल उनकी पदावली के पाठ और उसके रचना विषय को लेकर ही लिए हैं। कवि के मूल तत्व, साहित्य की धारा तथा उसकी तत्कालीन मुख्य प्रवृत्तियों पर उन्होंने कदाचित ही विचार किया हो। यदि विद्वान पालोचक विद्यापति के समय की धार्मिक, दार्शनिक एवं साहित्यिक धारामों का गहराई से अध्ययन करते तो वे विद्यापति के व्यक्तित्व
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