________________
प्रा. डॉ. एल. डी. जोशी
आदिक रंबा रुपे कड़ा गुजरि बहु रंगरे ॥ देवता में श्याम सोइ । देवता में माव सोइ, तिरथ में माहि रे ॥ करो सादु प्रारति ।। जेना पिता पुरा गुरु सुरा सादु ने मल्या श्याम रे ।। दास जिवण नि विनति रे । तमे सूणिलो माराज रे । सुणिलो श्री श्याम रे ॥ करो सादु प्रारति ॥
(८) लोक वार्ताएं (Folk tales.) " एक भ्रामण अतो। पण्णि ने परदेस कमावा ग्यो । कमाइ धमाइ ने बार वरे घेरे पासो प्राव्यो । घेरे प्रावि ने सब ठिकठाक करि ने अने वड नुं प्राणु लेवा हरि ग्यो । वाट में एक दोव बलंतु अतु ने प्रेरणा दोव में एक हाप सूपड़ा में बलतो ने बुम पाड़तो अतो। भ्रामण ने जोइ ने सापे क्यु के भाइ, मने बसाव । भ्रामण के के गुणना भाइ अवगुण थाय ते तु मने खाइ जाय एटले श्री तो तने में बसावं । सापे खौब कालावाला कर्या एटले भ्रामणे अने बांरतो काडयो। बारते मावि ने साप के के भो तो तने खौ। भ्रामण के के बार प्रो धेरे प्राव्यो सोने मारे वो नं प्राण करवा जो सो। साप क्यूके पारण करि ने वलतो प्रावतारे खै। भ्रामण सारे पुगो । प्राट दाड़ा रयो पण अनपाणि भावे। अने साले पस्य के जिजाजि उदास केम रो सो? भ्रामणे सब बात मांडि ने के संबलावि । साले क्यु के साप अजि बेटो ने प्रोवे, तमें सन्ता सोड़ि दो। आणु वदा कयु ने भ्रामण ने ने वी सापना रापड़ा कने प्राव्य के तरत साप आवि ने प्राडो उबो रयो। साप के औं तारि वाट जोतों तो। अधे खौ। भ्रामण नि वो तो पोक मेलि ने रोवा मांडि । साप के के तु सानि रे । खौब धन प्राय डाट्यु से ते ले जा ने प्रा बुटि से ते जे तने सताव वा सामु आवे अने अडाड़ि देजे ते भसम थै जासे । प्रेम के ने जेवो साप भ्रामण ने खावा ग्यो के तरत पेलि बाइये बुटि साप ने अडाडि दिदि । सांप तो तरत भसम थे ग्यो । भ्रामण खौब राजि थ्यो ने घणि वौ बे धन ले ने घेरे प्राव्यं ने खाइ पी ने मज़ा कर्या !! कर्या पुटे में करे ऐना गरु खोटा ॥"
( i ) "एक डोइ ने एक जवान बेटो अतो। जेम तेम करि ने डोइए तणसें रुपिया बेटा नि सगाइ बल्ले भेगा करि मेल्या अता। डोइ खाटला में मॉदि पडि । वामें मेलो भरातो अतो। बेटे क्यू के प्राइ मने पैसा आल औं ए मेलो जोइ पाएँ । डोइए क्युके तणसे में आ तण रुपिया लैजा। बेटे तण रुपिया रेवा दिदा ने बिजा सब लै ग्यो । मेला में थकि एक सांप लिदो, एक सुड़ो (पोपट) लिदो ने एक मनाडि (बिल्ली) लिदि । घेरे प्रावि ने प्राइ ने रात करि तारे आइ तो साति कुटि ने रोइ । थोडं दाड़ में डोइ तो देव लोक थे। एक दाड़ो साप के के मने मारे मां-बाप कने रॉपड़ा में मेलि आव तने नेयाल करसे । पण तु मारे बाप कने थकि प्रातनि मुद्रिकास माँगजे। बेटो साप मे मेलवा ग्यो । साप न मॉ-बाप खोब खुशि थ्य ने लावनार ने मांगवा क्यु । पेले तो मुद्रिका मांगी। नाग के के तारेवति ने सँबालाय ने तु दुकि थे। पण पेलो एकनो बे ने थ्यो एटले मुद्रिका प्रालि दिदि ने क्यु के जे जुवे इ मा मुद्रिका तने पालसे राजि थे ने भाइ तो घेरे पाव्या 1 विदा नि तारि करि करे से । माँडवो उगो ने भ्रांमण बेटा ने पेलो भाइ नाइ धोई नेते थे ने मॉडवा में बेटो ने मुद्रिका ने क्यू के देवलोक नि परि मावि जाय । खरे खर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org