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वागड़ के लोक साहित्य की एक झांखी
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(७) "प्रारती" (माव संप्रदाय) (i) आरतियो निज नारायण तुमारि ॥ हरि हरि अलख पुरुष अखंड अवन्यासी ॥ प्रारतियों.
.............. ।। १ ।। निरंजन निराकारि ज्योत अपारा ॥ भला मला मुनिजन पार न पाया ॥ प्रारतिरो
......... ॥ २ ॥
प्रारति करंता सकल जन तारया ॥ थम्ब पलोणि भगत प्रलाद उगार्या ।। प्रारतियो..........
........... ।। ३ ।। सुरत सड़ावि वनरावन पोस्या ॥ नुरत मेलि ने अनहद में नास्या प्रारतियो...........
......... ॥ ४ ॥ तनकि रे गादि ने मन का विसावणा ।। त्यांरे बिराज्या हो श्याम प्रवन्यासि ॥ त्यारे बिराज्या हो माव अवन्यासि ॥ प्रारतियो............................. .............. ॥ ५ ॥ कहें तो श्री जनपुरस सनमुक वासा ॥ श्याम विना सर्वे पंड रें कासा ।। माव विना सर्वे पंड हे कासा ॥ प्रारतियो.....
(ii) हरे बाबो खेल खेलावे ने संगे न आवे जोत कला अवन्यासी ।। हरे ।
सकल में व्यापक तेज तमारो तो मुक्ति राखियो घेरे दासि रे ॥ हरे । हरे बाबो अलगो ते अलगो ने बांहें से वलग्यो ।। प्रित करे जेने प्यारो ॥ कोई कहें जोगि ने कोइ कहे भोगि ॥ आप सकल थकि न्यारो॥ हरे ॥ हरे बाबो रंग में रास्यो ने नूरत में नास्यो ।। बालक थ घेरे प्राव्यो। दासमुकन कहे गरिब तमारो ने तो हरि चरण चित्त भासो॥
(iii) प्रारतिपो हरि ने समरु सतमन ज्ञानि करो सादु प्रारति
प्रतमि में पांडव उपज्या ने वस्या नव खंडरे ।। वेद भ्रम्माजि ना पंख्यारे ।। पंख्या भ्रम्मांड रे ।। करो साद प्रारति ।। दसरत ने घेरे अवतर्या ने वेट्यो वनवास रे ।। गड लंका ढारियोरे । कोट लंका ढारियों रे सेंदियो रावण रे ।। करो सादु प्रारति ॥ वसुदेव ने घेरे अवतर्या ने जुग में आनंद रे ॥ कंस मामो मारियोरे ।। मतुरं में खेल्या रासरे ॥ करो सादु प्रारति ॥
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