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"वागड़ के लोक साहित्य की एक झांखो"
७६ जब ब्राह्मण ने ऊपर वणित दरबार में जाकर आक्रमण की बात कही तो यह संवाद सुनकर 'हामलदा' की नवयौवना रूपमती राणी 'रेवारण' कहने लगी
"धिरे ने रैने राणि प्रोसरि जेणे ठामे हो राजे जो-२ सोम ने सोम परण्याजि सोजको जेणे हो राजे जो-२ होम में नति रे लापि-लाडुवा हो राजे जो-२ सोम में नति रे घरवाली नार जेणे ठामे हो राजे जो-२ केसर वरणि है राजनि दै जेणे राजे जो-२
मालना भसरका केम खमो जेणे ठामे हो राजे जो-२ हे मारिणगर, प्रियतम ! युद्ध में मत जाओ। आपकी केशर जैसी काया है । शत्रु का सैन्य अस्सी हजार का अपार है । असंख्य शत्रुओं के बीच आप अपने अल्प संख्यक साथियों के साथ कैसे झूझोगे ! मेरा मन मना करता है, अाप युद्ध में मत जाओ। तब राजा कहता है
हे प्रिये, तुम मुझे अपशुकन मत दो । अमंगल की बात मत कहो। तुम स्त्री जाति डरपोक होती हो। तुम्हें एक बार गर्म दूध की छांट लगी थी तो आठ दिन तक तुम शय्या से नीचे नहीं उतरी थी। परन्तु मैं क्षत्रिय बच्चा हूँ। मेरा धर्म आये हुए दुश्मन के दांत खट्टे करना या लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होना है। यों कहकर राजा ने भ्रामण को पत्र देकर राणा को कहलवाया है कि -
"सोमे ने सियारि पारिण आँगेंगे हो राजे जो, होमे ने हियारि पाणि आँगेणं हो राजे जो । सोम जो जूवे तो आवजे तलवाडे हो राजे जो-२"
अर्थात् सोम नदी दोनों राज्यों के बीच की विभाजक रेखा है। अतः समान मालिकी भले रहे परन्तु पानी पर तो सिर्फ हमारा ही अधिकार रहेगा। यदि पानी पाने का प्राग्रह हो तो तलवाड़ा राजधानी तक युद्ध लड़ते हुए आना पड़ेगा । यो समाचार भेजकर हामलदा ने युद्ध की तैयारी की और अपने सूरमा साथियों के साथ यह चौहान राजपूत अपने भम्मर-घोड़े पर बैठकर राणा से युद्ध के मैदान में जा भिड़ा और अपनी शान बान और पान को वीरता से कायम रक्खी !!
(३) "लोक गीत"
(लग्न गीत) धड़यो ने धड़ाव्यो बाज़रोट जावद जाइ जड़ाव्यो मेल्यो मोडानि पड़साले वौमोरे वदाव्यो कण माइ नं रौणि राज़ल बोलें सामि मारे सुड़िलो सिरावो कोण भाइ धेरे वर घोड़ि धड्यो ने धड़ाव्यो बाजरोट जावद जाइ जड़ाव्यो मेल्यो प्रोडानि पड़साले वौमोरे वदान्यो
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