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________________ ६४ मनोहर शर्मा स्थित की गई है । कहानी के प्रति कौतूहल पैदा करने की यह एक सुन्दर शैली है। एक प्रकार से इस तीर्थ - यात्रा से सम्बन्धित यह एक राजस्थानी कथाग्रन्थ है, जो विभिन्न रूपों में जनमुख पर अवस्थित है । संस्कृत में भी इस प्रकार अनेक कथाओं का संकलन हुआ है । इस उपोद्घात को देखते हुए सहज हो ' वेताल पंचविंशतिका' का स्मरण हो आता है, जिसकी प्रत्येक कथा के अन्त में एक प्रश्न उपस्थित किया जाता है । राजस्थानी लोककथा के प्रारम्भ किए जाने से पूर्व ही यह प्रश्नात्मक स्थिति सामने आ जाती है, जो रोचकता पैदा करने के विचार से विशेष महत्वपूर्ण है । २. ध्यान रखना चाहिए कि यही लोककथा बिना उपोद्घात के स्वतन्त्र रूप में भी कही जाती है । कहीं इसका कथानायक राजा का पुत्र न होकर सेठ का बेटा है। असल में यह लोककथा 'त्रियाचरित्र' वर्ग की है । इस वर्ग की कथाओं में नारी के चरित्र की दुर्बलता प्रकट की जाती है । यह परम्परा पुरानी है । 'शुकसप्तति' कथाग्रन्थ में ऐसी कथाए ही संकलित की गई हैं। कई कथाओं में नारी के साथ ही पुरुष - चरित्र की कमजोरी भी प्रकट की जाती है। राजस्थानी कथाग्रन्थ 'दम्पति -विनोद' में दोनों प्रकार की कथाएँ दी गई हैं । ३. प्रस्तुत लोक कथा में 'सत्यक्रिया' श्रभिप्राय: ( Motif) का दो बार प्रयोग हुआ है । भारतीय कथा साहित्य में इस 'अभिप्राय' के उदाहरण भरे पड़े हैं । कहीं इसे केवल 'किरिया' नाम दिया गया है। राजस्थानी बातों में इसके लिए 'धीज' शब्द अनेकशः देखा जाता है। इसमें कथा - पात्र अपने सत्य के प्रभाव से आश्चर्यजनक कार्य कर दिखलाता है । वह अग्नि में जलता नहीं, समुद्र या नदी में डूबता नहीं और मरे हुए व्यक्ति को पुनर्जीवित तक कर देता है । इसके अन्य भी अनेक रूप हैं । प्रस्तुत कथा में नायक पहिले अपनी पत्नी को अपनी आयु का श्रद्ध भाग प्रदान कर के जीवित कर देता है और फिर विपरीत स्थिति सामने आने पर अपनी आयु का अंश ग्रहण कर लेता है । ४. प्रस्तुत कथा में एक अन्य 'कथानक रूढ़ि' का भी प्रयोग हुआ है । वह है, 'शिव-पार्वती' । यह देव-दम्पति अनेक राजस्थानी लोककथानों में संकट के समय प्रकट होकर स्थिति को सुधार देते हैं और फिर कथा नया मोड़ लेकर आगे बढ़ती है। 'मारू ढोलो' की बात में ऐसा ही हुआ है । दुःखान्त कथा को सुखान्त बनाने के लिए भी इस 'रूढ़ि' का प्रयोग होता है । 'जलाल बूबना' की बात में ऐसा ही हुआ है । इसमें शिवपार्वती को विश्वनियामक के रूप में दिखलाया जाता है, जो शिव भक्ति की महिमा का प्रकाशमान उदाहरण है । ५. राजस्थानी लोककथा का प्रारम्भिक भाग विचारणीय है । इस में तालाब के जलपूर्ण होने का उपाय बलि देना बतलाया गया है । राजस्थान में जल संकट से बचने का साधन सरोवर का निर्माण करवाना सर्वविदित है । उसमें पानी का संचित न होना खेद जनक है । कथा में स्थानीय वातावरण की रंगत अतिरिक्त एक अन्य तत्व भी छिपा हुआ है । असल में यह बलि तालाब अथवा उस क्षेत्र के 'आरक्ष देव' संतुष्टि निमित्त दी जाती है । यह विधि प्राचीन यक्षतत्व का कथाओं में बचा हुआ अंश है । इतना ही नहीं, राजस्थानी लोकविश्वास में यह तत्व आज भी अनेक रूपों में दृष्टिगोचर होता है। गांवों में प्रथा है fक जब वर्षा नहीं होती तो सीमा पर देवता की प्रसन्नता के लिए 'बलि- बाकला' का विधान किया जाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012033
Book TitleJinvijay Muni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherJinvijayji Samman Samiti Jaipur
Publication Year1971
Total Pages462
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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