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एक राजस्थानी लोक कथा का विश्लेषणात्मक अध्ययन
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afe faa की दी जाय ? स्वयं की बलि से राजभंग होता था, रानी की बलि से लक्ष्मीनाश होता था और राजकुमार की बलि से संतान-परम्परा छिन्न होती थी । अतः उसने निश्चय किया कि पुत्रवधू की बलि दे दी जाय और पुत्र का विवाह फिर कर लिया जाय ।
राजकुमार अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता था । जब उसने सुना कि अगले दिन उसकी बलि दी जाएगी तो वह रात को ही चुपचाप उसे घोड़े पर साथ लेकर महल से निकल भागा। वे दिन भर आगे बढ़ते गए और संध्या के समय जंगल में एक कुए पर विश्राम के लिए ठहरे। वहां फल आदि खाकर रात को सो गए । जब दिन निकला तो राजकुमार ने देखा कि उसकी पत्नी सर्पदंश के कारण मरी हुई पड़ी है । इस पर उसने बड़ा विलाप किया और चिता तैयार करके उसके साथ ही वह जलने को उद्यत हुआ ।
संयोग से उधर शिव-पार्वती श्रा निकले। पार्वती को आश्चर्य हुआ कि पुरुष अपनी मृत पत्नी के साथ जल रहा है ! भेद मालूम करके उसने शिव से आग्रह किया कि किसी तरह उसकी पत्नी को पुनर्जीराजकुमार की पत्नी आयु समाप्त होने जीवित कर सकता है । राजकुमार ने
वित किया जाए। पार्वती के हठ को देखकर शिव ने प्रकट किया कि के कारण मरी है, अतः राजकुमार उसे अपनी आयु का भाग देकर ही ऐसा ही किया । उसने 'सत्यक्रिया' के सहारे अपनी आयु का अर्द्ध भाग अपनी पत्नी को प्रदान किया और वह फिर से जीवित हो गई । शिव-पार्वती चले गए और राजकुमार ने कोई बात अपनी पत्नी के सामने प्रकट नहीं की । भी वहां से आगे बढ़ गए ।
संध्या के समय राजकुमार एक नगर के बाहरी भाग में पहुँचा । वहाँ उसने एक कुएँ के पास अपनी पत्नी को छोड़ा और स्वयं भोजनादि लाने के लिए नगर में गया । जब वह लौट कर प्राया तो उसकी पत्नी वहाँ नहीं मिली। पास ही कुछ नट ठहरे हुए थे । वह कामातुर होकर एक नट के पास चली गई और उससे प्रेम प्रस्ताव किया । नट ने उसे अपने यहाँ रख लिया । जब राजकुमार तलाश करता हुआ नट के पास पहुँचा तो उसने दूसरी ही दुनिया देखी । उसकी पत्नी ने अपने पति के रूप में नट को बतलाया । कुछ झगड़ा हुआ और यह मामला राजा के पास पहुँचा । बाजार के बीच में न्याय सभा बैठी । राजकुमार से प्रमाण माँगा गया तो उसने 'सत्यक्रिया' से अपनी दी हुई प्राधी प्रायु वापिस ले ली और वह स्त्री तत्काल मर कर गिर पड़ी। इस पर लोगों को भारी प्राश्चर्य हुआ। राजकुमार ने पीछे का संपूर्ण वृत्तान्त सब को कह सुनाया। राजा ने नट को दण्ड दिया और राजकुमार को सम्मान मिला। फिर वह अपने नगर को लौट गया और भारी वर्षा हुई जिस से राजा का तालाब पूरा भर गया ।
इतनी कहानी कह कर ठाकुर ने खवास को समझाया कि नगर के बाजार में जिस स्त्री को उसने मृतक अवस्था में देखा है, वही राजकुमार की पत्नी है । ऐसी स्त्री की ओर घृणा से कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इस पर खवास की शंका शांत हो गई और वह यात्रा पर आगे बढ़ने के लिए राजी हो गया ।
ऊपर राजस्थानी लोककथा का सारमात्र दिया गया है। इसका विश्लेषण करने से निम्न चीजें सामने आती हैं। :- १. सर्व प्रथम कथा का 'उपोद्घात' ध्यान देने योग्य है। ठाकुर और खवास की तीर्थयात्रा के प्रसंग में अनेक कथाए कही जाती हैं क्योंकि खवास प्रत्येक विश्राम पर एक नई शंका सामने रखता है । इस विषय में भिन्न-भिन्न प्रकार की कहानियां हैं । परन्तु उनमें से प्रत्येक के अन्त में रहस्यात्मक स्थिति उप
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