________________
GOAca
साक्षात्कार के स्वणिम क्षण
ऐसे सरलमना, व्यक्तित्व के धनी
के पावन-पाद कमलों में हार्दिक वदना, एवं मंगल -साध्वी निरुपमा कामना है कि आप पूर्णरूप से स्वस्थ रहकर जिन
शासन प्रभावना में अभिवृद्धि करते रहें। परमाराध्या गुरुणी जी का जीवन इतना मधुर तथा इतना अधिक आकर्षणशील है जो जनमानस को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है, आपके
अविस्मरणीय साक्षात्कार जीवन में आचार और विचार का, त्याग और
-साध्वी गरिमा, एम० ए० वैराग्य का, संयम और समता का दर्शनीय संगम हुआ है।
मेरा जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा में
मैंने अनेक बसन्तों को पार किया, इस यात्रा ___आपकी प्रवचन शैली निराली है, आप जब भी
है, आप जब भा का प्रारम्भिक बिन्दु-जन्म है। किन्तु मेरी आत्मओज भरी वाणी में विषय के तलछट तक पहुँचकर यात्रा. मेरी आत्म-कथा का कोई आदि-बिन्दु नही विश्लेषण करते हैं तब श्रोताजन विस्मय, विमुग्ध है. अतः वह अनादि है। जब से मैं इस जीवनयात्रा हो जाते हैं। आपके प्रवचन जन जीवन के प्रांगण पर अग्रसर हुई, तब से मैंने बहुविध अनुभवों में सत्य, सदाचारशील, संयम का कल्पवृक्ष उगाने
का परिस्पर्श अन्तर्जगत एवं बहिर्जगत में किया। ५ का, उसको श्रद्धा से सींचने का सफल प्रयास है।
सि ह। उन अनुभवों में कतिपय अनुभव ऐसे स्वर्णिम-कोटि सन् १९८४ का वर्ष मेरे जीवन का सर्वाधिक में आते हैं, जो जीवन-पर्यन्त स्मरणीय हैं, संस्मरमहत्वपूर्ण वर्ष रहा है। यह वर्ष मेरे लिए प्रकर्ष णीय हैं और अक्षय सम्पदा के रूप में हैं। हर्ष का वर्ष था इसी वर्ष में मेरे मन का पंछी सन १९७८ में मेरा एक परम विरल-विभूति से संयम के अनन्त असीम गगन उड़ाने भरने हेतु चाक्ष-प्रत्यक्ष हआ, जो शासन ज्योति साध्वी रत्न |
उत्कण्ठित हो उठा और मैं १९८६ में पाली शहर श्री कुसूमवती जी इस संज्ञा से जिनशासन की म में दीक्षिता हुई तब से ही आपके स्वर्णिम सान्निध्य श्रमणी परम्परा में चिर विश्रत हैं। मेरा यह प्रत्यक्ष
में ज्ञान दर्शन और चारित्र की त्रिवेणी में अवगाहन परिचय का प्रथम-क्षण विलक्षण क्षण सिद्ध हुआ। करती रही और मेरा आप से नित्य, निरन्तर जो क्षण सिद्धि के मंगल द्वार को उद्घाटित करने में साक्षातकार होता रहा । साक्षात्कार के सभी-क्षणो निमित्तभत बना। में मैं आपको अपनी अनुभूति के दर्पण में बहु- फलस्वरूप सन् १९८० में मेरे जीवन का काया: आयामी रूपों में रूपायित होती हुई देख रही हूँ। कल्प हआ। मैं पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर __ आपकी सरलता कृत्रिम सरलता नहीं है प्रस्थित हुई, संसार मार्ग से विमुख हुई और मोक्ष वस्तुतः आप में सहज सरलता के परिदर्शन होते हैं, मार्ग की ओर उन्मुख हुई। यहीं से मेरी आत्मा आपके जीवन में न सजावट है, न बनावट है, न की अभ्युदय-भूमिका प्रारम्भ हुई । तब से अब तक दुराव है, न छिपाव है जो कुछ है वह नख-शिखान्त मैंने आपको पाया कि आप में एक नहीं, अनेक तक सरल ही सरल है । अन्तरंग सरल है, बहिरंग विलक्षण-विशेषताएं हैं। उन अनुपम, दिव्य विशेषसरल है, सचमुच में आप स्वयं सरलता की पर्याय ताओं को अर्थात् गुण-सिन्धु को शब्द-बिन्दु में समाहैं। आपकी सरलता को, छिन्न-भिन्न रूप में हित करना असम्भव है । असम्भव को सम्भव करने देखना असम्भव है।
की दिशा में मेरा यह उपक्रम अनन्त-असीम
30
C
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
3 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
, A0
Jaleducation International
Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org