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वंदन-अभिनन्दन
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-जैन साध्वी मधुबाला 'सुमन' (शास्त्री, साहित्यरत्न, एम. ए.) -परम देव का आराधन करने के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र की आराधना करने के लिए आपने
सुप्त मन को जगाया। -रमण हो अपने आप में, बाह्य पुद्गलों से परे हट कर स्व पुद्गलों में रमण करें। -महामोहनीय कर्म को दूर करने के लिए जो अनादि काल से इस आत्मा के साथ लगे हैं, उन । सब कर्मों में मोहनीय कर्म जबरदस्त है। उसे दूर करने के लिए १० वर्ष की उम्र में आत्म चिंतन कर बंधु-बांधवों का मोह त्याग निर्मोही बने । -वीतराग वाणी को घर-घर फैलाते हए स्वयं भी आत्मसात् करते हुए स्वपर आत्मा को उज्ज्वल बना रहे हैं । आपका ज्ञान ठोस, हृदयस्पर्शी है। वीतराग वाणी का अध्ययन आपने उपाध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. से किया है। -दुष्कर, महादुष्कर, ब्रह्मचर्य रत्न का आराधन करना, जो भुक्त भोगी बन चुके हैं, वे भी ब्रह्मचर्य का पालन बड़ी कठिनाई से करते हैं । लेकिन धन्य है आपको, बाल अवस्था में जैन आर्हतीK दीक्षा अंगीकार कर असिधारा के समान ब्रह्मचर्य को पालन कर रहे हैं। -सीखा है, आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषाओं का ज्ञान, आगमों का ज्ञान एवं अन्य संस्थाओं से परीक्षा देकर व्याकरण, मध्यमा, काव्यतीर्थ, न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, 16
जैन सिद्धान्ताचार्य किया। -साध्य वस्तु को ही साधी जाती है । आत्मा का हित साधने के लिए से अध्यात्म क्षेत्र में
मोड़ने के लिए महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. ५२ वर्षों से आत्मसाधना में जुटी हुई है। -ध्वस्त करने आठ कर्मों के वृन्दों का । घन घाती कर्म आत्मा के साथ ऐसे चिपक गये हैं, जैसे उनका आत्मा पर पूर्ण अधिकार हो । अतः जिनका जिस पर अधिकार नहीं उस पर जबरदस्ती - कोई कब्जा करता है, तो मालिक उसे वहां से हटा देता है। ठीक ऐसे ही आत्मा पर कब्जा किए हुए कर्मों को आप स्वामित्व के हिसाब से हटा रही है। -रणकार हो रही है आप्त वाणी की, समदृष्टियो जाग जाओ। जाग गये तो लाभ में रहोगे। यह अवसर बार-बार नहीं मिलता, जो वस्तु जगत में दुर्लभ है, वह अमूल्य है । अमूल्य वस्तु पुनः नहीं मिल सकती। -तन को सजाने से क्या लाभ ? आत्मा को सजाने में ही मजा है। तन तो मिट्टी का पुतला है, ठपक लगते ही फूट जाता है, लेकिन आत्मा अमर रहती है । नाशवान वस्तु से प्रेम नहीं रखा। जाता है । अनाशवान वस्तु से प्रेम रखना ही बुद्धिमानी है ।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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1. साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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