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युग युग जीवें महासती
- श्रमण विनय कुमार 'भीम'
परमविदुषी प्रवचन भूषण साध्वी रत्न श्रीकुसुमवतीजी महाराज स्थानकवासी श्रमण संघ की एक प्रभावशाली साध्वी हैं। मैं एक बार गुरुदेव जैन भूषण व्रजलालजी महाराज, गुरुदेव युवाचार्यश्री के साथ ब्यावर में था उस समय महासती श्री कुसुमवतीजी महाराज से मिलन हुआ था । व्यावर स्थित कुन्दर भवन में प्रवचय के दौरान महामती के ओजस्वी महत्वपूर्ण प्रवचन सुनने का मौका मिला। संयम के पचास वर्ष होने पर समाज संघ श्रावक वर्ग आपका अभिनन्दन करना चाहता है । हमारे श्रमण संघ के उपाध्याय पुष्कर मुनिजी महाराज एवं उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज की साध्वी समुदाय में महासती श्री कुसुमवतीजी का प्रमुख स्थान है । वैसे हमारे भारतीय इतिहास में शुरू से नारी का उज्ज्वल इतिहास रहा है । आगमों, पुराणों में, वेदों में नारी के गौरवपूर्ण आदर्श मिलते हैं। जैन जगत में नारी की गाथाएँ स्थान-स्थान पर मिलती हैं। मुझे अत्यन्त खुशी है, एक सती का अभिनन्दन किया जा रहा है । हमेशा गुणियों का गुणानुवाद होता रहा है । आपने श्रमण संघ में अपना गौरवपूर्ण स्थान बनाया | साध्वी श्री ने अनेक परीक्षाएँ दीं । हिन्दी, गुजराती, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषा की जानकार हैं । परम विदुषी साध्वीरत्न दिव्यप्रभा कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ का सम्पादन कर रही हैं । यह ग्रन्थ छपकर समाज में आएगा तो हर जैन समाज के लोगों को सतीजी के जीवन से प्रेरणा मिलेगी । कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ लोकप्रिय बनें यह मेरी शुभकामना ।
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शुभाशीर्वचन
महासती श्री शीलकुंवर जी महा.
त्याग बगीचे,
वीर- प्रभु के एक अनोखा सुमन खिला । महक फैल रही दिग - दिगंत में देखी जिसकी अजब कला ।
कोठारी वंश को उज्ज्वल कीना 'कुसुमवती जी' महासती । सोहन कुँवर गुरुणी-सा तब, जिनकी भी थी गजब मती ।
उनके वरद हस्त की छाया, मिली आपका भाग्य बड़ा । नत मस्तक चरणों में सीखा, ज्ञान वैराग्य का रंग चढ़ा ।
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श्यामवर्ण ज्ञान से मोटे, तन तो दिखता छोटा है । सम्पर्क पा जन बोल उठे, अहो, जीवन इनका मोटा है ।
विहार क्षेत्र विशाल तुम्हारा, जन-जन को सबोध दिया । शिष्या प्रशिष्या को योग्य बना, जीवन का उत्थान किया ।
दीर्घायु बन जिनशासन की सेवा में तत्पर रहना । सफल साधना बने तुम्हारी, शीलकुँवर का है कहना ।
साध्वीरत्न ग्रन्थ
प्रथम खण्ड : श्रद्धाचंना
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