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मानवता....
कुछ दिन की ही जिन्दगानी
(तर्ज-जब तुम्हीं चले.) क्यों करता तू अभिमान, अरे इन्सान ये दुनिया फानी, कुछ दिन की ही जिन्दगानी"." ___कंचन जैसी जो काया है
जिसे देख-देख हरषाया है मत भूल ये एक दिन मिट्टी में मिल जानी"
धन-वैभव को पा फूल रहा
खुशियों के झूले झूल रहा प्यारे माया भी नहीं साथ में आनी...
हुए बड़े-बड़े कई महाबली
पर नहीं किसी की यहाँ चली करते थे जो अभिमान. न बची निशानी"
तेरी तो क्या यहां हस्ती है
फिर भी ये छाई मस्ती है अब छोड़ मस्ती को 'कुसुम' बात ले मानी"
पाप छुपाया ना छुपे
(तर्ज-चुप-चुप") चुप-चुप करो चाहे जितना भी पाप है छिप के न रहता कभी खुले आपो आप है." करो चाहे घर में चाहे सुनसान में जंगल में करो पाप चाहे श्मशान में होता वह प्रकट चाहे रहो चुपचाप है" पाप करने वाला खुश रहता थोड़ी देर है प्रकृति से देर होती, न होती अंधेर है-२ पाप करने वाला सदा पाता फिर संताप है.... पापों से आत्मा को भारी जो बनाता है सीधा वह मरकर दुर्गति को जाता है दुख वहां पाता अति करता विलाप है" पाप फल जान मन पापों से हटाइये जीवन मिला है इसे व्यर्थ न गंवाइये
कहती 'कुसुम' करो प्रभु का हो जाप है.... ५२४
(तर्ज-दिल लूटने वाले....) जिसमें होती मानवता है, वही मानव पूजा जाता है
जिसमें होता है नीर वही,
सच्चा मोती कहलाता है | दुखियों के दुख को देख-देख,
जिसका तन-मन व्याकुल होता ? पीड़ा उनकी ही हरने को,
__ जिसका तन-मन आकुल होता !! कर भला दूसरों का जिसका,
मन हरदम ही हर्षाता है.... शत्रु हो चाहे मित्र कोई,
सबको ही जो अपना जाने नहीं कभी किसी से द्वष करे,
सबका दुख अपना दुख माने गुणियों का जो सम्मान करे,
और प्रेम के दीप जलाता है." सद्गुण से पूरित मानव ही,
सच्चे मानव कहलाते हैं है गन्ध-युक्त जो 'कुसुम' वही,
___जग में पूजा को पाते हैं उसका ही जग सम्मान करे,
और गीत उसी के गाता है"
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BANAPAN
सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ 6
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