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धर्म का रहस्य जानिए, उसे परखिए, अपने 'वैराग्य' त्याग की नींव है। जितना वैराग्य । जीवन को धर्म से परिष्कृत कीजिए, इसी में 'मानव- सुदृढ़ होगा उतना ही त्याग अपना अस्तित्व बनाये जीवन' की सफलता है।
रखेगा।
जब मानव के मन, वाणी तथा कर्म में सत्- तप एक ऐसी अक्षय ऊर्जा है जो जीवन को पुरुषार्थ, न्याय-नीति एवं सत्य का दिव्य-आलोक प्राणवान बनाती है। जगमगाता है तभी मानव जीवन की सार्थकता है ।।
ज्ञान एक दिव्य ज्योति है जो हमारे जीवन में धर्म मानव-जीवन की शुद्धि, बुद्धि की एक छाये हुए अज्ञान अन्धकार को तिरोहित कर देता अतीव सुन्दर प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया मानव को है। कष्ट, व्यथा के जाल से मुक्त करती है।
अहिंसा एक ऐसी उर्वर भूमि है जिस पर सत्य साहस एक ऐसी नौका है जिस पर आरूढ़ का पौधा उग सकता है और पनप सकता है। व्यक्ति आपदाओं के अथाह समुद्र को पार कर लेता
___ जो मानव सत्य धर्म की आराधना करता है
उसका आत्मबल अवश्य बढ़ जाता है। 'क्रोध' एक ऐसी अन्धी आँधी है जिसमें व्यक्ति को हित और अहित का परिबोध नहीं होता है। जब मानव सत्य को दृढ़ता से अपना लेता है,
उसे आत्मसात् कर लेता है तो जो पाप कर्म उसे का 'ब्रह्मचर्य' व्रत नहीं महाव्रत है, व्रतों का राजा घेरे हुए हैं, उन सबको वह दूर कर देता है। है। जीवन रूपी मणि माला का दीप्तमान सुमेरु
सत्य मानव-जीवन की अक्षय ज्योति है, अनसंगठन एक ऐसा स्वर्णिम-सूत्र है जिसमें आबद्ध .
मोल विभूति है उससे बढ़कर कोई धर्म नहीं है। व्यक्ति अपनी शक्ति को शतगुणित कर देता है।
सचमुच सत्य ज्ञान में अन्य सभी ज्ञान का अन्त
र्भाव हो जाता है । यदि सत्य का सम्पूर्ण रूप से ___ 'सम्यग्दर्शन' अध्यात्मसाधना का आधारभूत पालन हो सका तो सहज ही सारा ज्ञान प्राप्त हो स्तम्भ है। जिस पर चारित्रिक समुत्कर्ष का सुरम्य जाता है। प्रासाद अवलम्बित है।
परिग्रह एक प्रकार का पाप है वह मानव-जीवन 'परोपकार' एक ऐसी प्रशस्त प्रवृत्ति है जिसमें को पतन के गहरे गर्त में डाल देता है । स्व और पर का हित निहित है।
पाप और सांप ये दोनों ही हानिप्रद हैं। सांप से। 'त्याग' जीवन रूपी मन्दिर का चमकता हुआ भी बढ़कर पाप है। कलश है जिसकी शुभ्र आभा को कोई भी धूमिल नहीं कर सकता।
आत्मा चेतन है, अनन्त शक्तिसम्पन्न है । ज्ञाता
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सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
pende 20 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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