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लघु निबन्ध
नारी नारायणा
भारतीय संस्कृति अत्यधिक प्राचीन और किये, ऐसी अत्यन्त सुकुमार नारियाँ भी जब साधना विशाल संस्कृति रही है। प्रस्तुत संस्कृति रूपी के क्षेत्र में आगे बढ़ीं तो कठोर कंटकाकीर्ण महासरिता का प्रवाह विविध आयामों में विभक्त होकर मार्ग पर उनके मुस्तैदी कदम रुके नहीं । भीष्मप्रवाहित होता रहा । यदि हम उन सभी प्रवाहों को ग्रीष्म की चिलचिलाती धूप में भी वीरांगना की दो धाराओं में विभक्त करें तो उसकी अभिधा होगी तरह नंगे पाँव निरन्तर आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने वैदिक संस्कृति और श्रमण संस्कृति । इन दोनों यह सिद्ध कर दिया कि 'जे कम्मेसूरा ते धम्मे सूरा' KC धाराओं का सम्मिलित रूप ही भारतीय संस्कृति भगवान् महावीर के शासन में छत्तीस हजार है। इन दोनों संस्कृतियों का साहित्य, वेद, उप- श्रमणियाँ थीं जिनमें साध्वीप्रमुखा थी महातपनिषद, आगम और त्रिपिटिक रहा है। जब हम उस स्विनी चन्दनबाला । जिन्होंने उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो नारी की महिमा की प्रवर्तिती पद प्रदान किया था। भगवान महाऔर गरिमा का भी वर्णन मिलता है तो दूसरी वीर के शासन में श्राविकाओं की संख्या तीन लाख ओर नारी के निन्दनीय रूप की भी उजागर किया अठारह हजार थी। उनमें अनेक प्रतिभासम्पन्न गया है । यह सत्य है कि वैदिक महर्षियों की अपेक्षा श्राविकाएं थीं । भगवती सूत्र में जयन्ति श्रमणो-43) श्रमण संस्कृति के तीर्थंकरों ने नारी के जीवन के पासिका का उल्लेख आता है जिसने श्रमण भग-IKe उदात्त और उदार रूप को विशेष अपनाया है। वान महावीर से अनेक तात्विक प्रश्न किये जो || तथागत बुद्ध प्रारम्भ में नारी के प्रति असहिष है उसकी प्रकृष्ट प्रतिभा के द्योतक रहे पर जैन संस्कृति के प्रभाव से प्रभावित होकर नारी यों वैदिक संस्कृति में भी गार्गी महाविदुषी के प्रति उनका दृष्टिकोण उदार बन गया। रही । अनेक ऋचाओं का निर्माण भी वैदिक संस्कृति 5 ___ जैन साहित्य में नारी का जो रूप हमें प्राप्त में पली-पुसी नारियों ने किया। बौद्ध परम्परा में होता है। उसे पढ़कर चिन्तकों के मस्तक श्रद्धा से शुभा और संघमित्रा जैसी प्रतिभासम्पन्न नारियों नत हो जाते हैं। श्रमण भगवान महावीर ने अपने ने इतिहास को एक नई दृष्टि प्रदान की। नारी का चतुर्विध संघ में दो संघ का सम्बन्ध नारी से रखा सर्वतोमुखी विकास जैन और बौद्ध ग्रन्थों में देखने है। एक श्राविका है और दूसरी श्रमणी। धर्म के का मिलता । क्षेत्र में नारी के कदम पुरुषों से आगे रहे हैं । अन्त- नारी मानवता के इतिहास की प्रधान नायिका कृद्दशांग सूत्र में काली, महाकाली, सुकाली आदि है जिसके आधार पर राष्ट्रों ने प्रगति की, धर्मों श्रमणियों ने तप के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित का उदय हुआ। मानव हृदय एक दूसरे से मिले, किया है वैसा कीर्तिमान सभी श्रमण स्थापित परस्पर के सम्बन्धों में सुधार हुआ, मधुरता का नहीं कर सके । जो नारी एक दिन पुष्पों पर चलने संचार हुआ। सेवा और समर्पण की प्रतिमूर्ति नारी से भी कतराती थी जिन्होंने सूर्य के दर्शन भी नहीं ने अपनी विभिन्न भूमिकाओं में समाज को जो दिया
(शेष पृष्ठ ५०१ पर) सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
४६७ 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ,
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