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चिन्तन सूत्र
३. सद्गुणों का प्रचार हो
मैं एक बार सोक्रेटिस के जीवन प्रसंगों को पढ़ रही थी। पढतेपढ़ते एक ऐसा प्रसंग आया जिसने मेरे मन मस्तिष्क को झकोर दिया।
प्रसंग था-सोक्रेटिस की पत्नी अत्यन्त ऋद्ध प्रकृति की थी। छोटीछोटी बात पर उसका मूड़ बिगड़ जाता था। एक बार ऋद्ध होकर उसने ठण्डे पानी का घड़ा सोक्रेटिस के सिर पर उड़ेल दिया और ज्योंही घड़ा उड़ेला त्योंही सोक्रेटिस घर से बाहर निकल गये ।
एक व्यक्ति जो दूर से यह दृश्य देख रहा था वह खिल-खिलाकर हँस पड़ा और मुस्कराते हुए कहा-तुम तो बड़े कायर निकले । जो घर छोड़कर भाग रहे हो।
सोक्रेटिस ने गम्भीर मुद्रा में कहा-मैं कायर नहीं हूँ। पति और पत्नी के बीच का यह झगड़ा तमाशा का रूप न ले ले इसीलिए मैं घर से बाहर निकल पड़ा हूँ।
मैं इस प्रसंग को पढ़कर सोचने लगी कि उस युग में सोक्रेटिस को यह पता नहीं था कि दो की लड़ाई टी. वी. के माध्यम से घर-घर में फैल जाएगी। आज जहाँ कहीं भी झगड़ा, खून आदि होता है वे दृश्य टी. वी. पर दिखाये जाते हैं और समाचार पत्रों में भी इसी प्रकार की सूचनाएँ आकर्षक रूप में छापी जाती हैं और उसका परिणाम कितना विकृत हो रहा है, यह हम स्वयं आँखों से निहार रहे हैं। रामायण को टी. वी. के पर्दे पर निहार कर करोड़ों व्यक्तियों में से एक व्यक्ति भी राम नहीं बना, न भरत बना और न लक्ष्मण ही और न सीता का ही किसी ने आदर्श उपस्थित किया पर दुर्गुणों को मानव सहज रूप से ग्रहण करता है। आवश्यकता है दुर्गुणों का प्रचार रोका जाए और सद्गुणों का प्रचार किया जाए।
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सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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3 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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