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________________ बादशाह को कहा-देखो, सुना आपने, वह काफिर युद्ध हुआ। परिवार, समाज और राष्ट्र में जब भी Mi क्या बोल रहा है । उसने मुझे तुर्कणी कहा है और संघर्ष की चिनगारियाँ उछलती हैं। उसका मूल जहाँ मैं बैठी थी उस स्थान को उसने दूध से धोने कारण होता है वाणी पर नियन्त्रण का अभाव । को कहा है, उसके मन में कितना हलाहल जहर वाणी और पानी दोनों ही निर्मल और मधुर होने । भरा पड़ा है। बादशाह ने सुना और साक्रोश मुद्रा पर ही जन-जन को आकर्षित करते हैं। समुद्र में ? में बीरबल को आवाज दी । बीरबल सनम्र मुद्रा में पानी की कोई कमी नहीं है पर वह पानी इतना आकर खड़ा हुआ। अधिक खारा है कि कोई भी प्राणी उस पानी को मार बादशाह ने सरोष मुद्रा में बीरबल से पूछा- पीकर अपनी प्यास शान्त नहीं कर सकता । समुद्र में तुम्हें इस प्रकार के शब्द बोलते हुए शर्म नहीं जितनी स्टीमरें चलती हैं, नौकाएं घूमती हैं। उनमें || आयी ? तुमने हमें भोजन इसलिए कराया कि बैठने वाले यात्रीगण अपने साथ पानी लेकर जाते हमारा अपमान हो । आज तुम्हारे मन का परदा हैं और कई बार जब पीने का पानी समाप्त हो । फाश हो गया और तुम्हारा असली स्वरूप उजागर जाता है तो उन नौकाओं में रहने वाले व्यक्ति छट-17 हो गया कि तुम्हारे मन में हमारे प्रति कितनी नफ- पटा कर अपने प्रिय प्राणों को त्याग देते हैं पानो रत है । दिल चाहता है कि तलवार से तुम्हारा में रहकर के भी वे प्यास से छटपटाते हैं इसका सिर उड़ा दिया जाए। मूल कारण है खारा पानी पीने योग्य नहीं है । वैसे । ___ बीरबल ने अपनी आकृति इस प्रकार बनायी ही खारी वाणी भी दूसरों के मन को शान्ति नहीं है। कि मानो उसे कुछ पता ही नहीं हो। उसने कहा- प्रदान कर सकता। जहाँपनाह ! मैंने ऐसी क्या बात कही है जिसके मेरी सद्गुरुणी श्री सोहनकँवर जी महाराज IN कारण आपश्री इतने नाराज हो गये हैं। अपने प्रवचनों में कहा करती थीं कि पहले बोले- बादशाह ने कहा है, अब भोला बन रहा है। श्रावकजी थोड़ा बोले, दूसरे बोले-श्रावकजी काम तेने तुर्कणी नहीं कहा ? तेने उस स्थान को दूध से पड़या बोले, और तीसरे बोले-श्रावकजी मीठा धोने के लिए नहीं कहा ? बोले । हमारे प्राचीन जैनाचार्यों ने श्रावक के मार्गाहाँ-हाँ भूल गया पर वे शब्द मैंने इसलिए कहे नुसारी के गुण बताये हैं उनमें एक गुण है- वाणी थे कि आपश्री ने उस दिन राजसभा में कहा था की मधुरता । श्रावक और साधक की वाणी अत्यंत कि बीरबल सिद्ध कर बता कि वाणी सबसे अधिक मधुर होती है। वह सत्य को भी मधुर वाणी के fy 2|| मधुर कसे है ? जहांपनाह ! मैंने बढिया से बढ़िया द्वारा ही कहता है हमारे शरीर में जितने भी अंगो-|| आपश्री को भोजन करवाया, जिसकी आप स्वयं ने पांग है उन सभी में हड्डियाँ हैं हड्डियाँ कठोरता और बेगम साहिबान ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की। की प्रतीक हैं पर जबान में हड्डो नहीं है। क्यों नहीं पर वह सारा भोजन एक क्षण में एक शब्द में है। इसका उत्तर एक शायर ने दिया हैजहर बन गया । वाणी की कडवाहट ने भोजन को कुदरत को नापसन्द है सख्ती जुबान में विष में परिवर्तित कर दिया। अब तो आपथी को इसलिए पदान हुइ हड्डा जुबान म । यह विश्वास हो गया होगा कि वाणी से बढ़कर यदि हम आगम साहित्य का अध्ययन करें तो इस विश्व में अमृत भी नहीं है, और न जहर ही है हमें यह सहज ज्ञात होगा कि महापुरुषों की वाणी मधुर वाणी अमृत है तो कटु वाणी जहर है। में कितना माधुर्य था ? तीर्थंकर प्रत्येक साधक को, ___वाणी के दुरुपयोग के कारण ही महाभारत का 'भो देवाणु प्पिया' शब्द से सम्बोधित करते हैं। 17 ४६४ सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 6850 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Octo Jain Edmon International N ate & Personal Use Only www.jainelibrary
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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