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अर्थात् सब जीव जीने की इच्छा करते हैं, कोई मरना नहीं चाहता। इसीलिये घोर प्राणिवध का निर्ग्रन्थ परिहार करते हैं। जल संरक्षण
शुद्ध पेय जल की कमी सारे विश्व में अनुभव की जा रही है। जल को बचाना आज हमारे लिए परम आवश्यक हो गया है । जब हमें जल प्रचुरता के साथ मिलता है, तब हम उसका अपव्यय करते हैं । और तभी गवत्ति विवशतापूर्वक धारण करते हैं, जब जल सीमित रूप में उपलब्ध होने लगता है। हमें यह अभिवृत्ति बनानी होगी कि जल सीमित है और यदि हम आवश्यकता से अधिक उसका उपभोग का करते हैं, तो कुछ अन्य प्राणियों को उससे वंचित रखते हैं । उपयोग किए हुए दुषित जल के पुनः शुद्धीकरण का प्रयास भी साथ-साथ चलना चाहिये । नहाने, कपड़े धोने तथा बर्तन धोने से अवशिष्ट पानी का उपयोग वृक्षों को जीवन दान देने के लिए होना चाहिए । ऊर्जा संरक्षण
वृक्षों के नष्ट होने तथा वन उजड़ने का एक मुख्य कारण लकड़ी का ईंधन के रूप में प्रयुक्त होना है । ऊर्जा चाहे लकड़ी से प्राप्त हो, या कोयले से या गैस से या विद्य त से, उसकी कमी सदा रहती है और रहने वाली है । हमारी भोगवादी संस्कृति द्वारा विद्य त ऊर्जा का अपव्यय बहुत होता है । ऊर्जा ।। को बचाना भी हिंसा को रोकना है । ऊर्जा के कुछ प्राकृतिक साधन ऐसे भी हैं, जिनसे वातावरण दूषित नहीं होता और परम्परागत ऊर्जा की बचत भी होती है । सूर्य ऊर्जा का अनन्त स्रोत है। भोजन बनाने में तथा अन्य कामों में सूर्य ऊर्जा का प्रयोग किया जाए तो हिंसा भी कम होती है, स्वास्थ्य-रक्षा भी। होती है और ऊर्जा की बचत भी होती है। वनस्पति संरक्षण
वनस्पति में जीवों का अस्तित्व सभी स्वीकार करते हैं। भारतीय संस्कृति में वृक्षों की देवता के समान पूजा की जाती है। उसके पीछे दृष्टि यही है कि यदि वृक्ष हमें जीवन, वायु, फल, फूल, पत्ते और छाया प्रदान करके हम पर उपकार करते हैं, तो हमें प्रतिदान में अन्य उपयोग से बचे हुए पानी तथा निरर्थक वस्तुओं का खाद देकर उनका प्रतिदान करना चाहिये तथा उन्हें नष्ट नहीं करना चाहिये । हम आवश्यकतानुसार वृक्षों से ग्रहण करें, उनको बढ़ने के लिए प्रतिदान करें तथा उन्हें न स्वयं नष्ट करें, न दूसरों को नष्ट करने दें। वायु संरक्षण
वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कारखाने हैं। इस प्रदूषण से न केवल हमारा वायुमंडल दूषित हो रहा है बल्कि अनेक गगनचारी, जलचर तथा स्थलीय जीवों का प्राण-घात हो रहा है । प्रत्येक कारखाने के लिए यह कानूनी अनिवार्यता होनी चाहिए कि वह दूषित गैिसों के लिए उपचार यन्त्र का प्रावधान करे ताकि वायु प्रदूषण से होने वाली हिंसा को रोका जा सके। भू संरक्षण
कृषि कर्म कभी जैनों का व्यावसायिक कर्म माना जाता था। आज अधिक उत्पादन तथा अनाज संरक्षण के पागलपन ने कीटनाशक दवाइयाँ पृथ्वी की ऊपजाऊ शक्ति को एक साथ ऊपर लाकर कालान्तर में समाप्त कर देने वाले रासायनिक खाद, पृथ्वी की अत्यधिक गहरी जुताई आदि ऐसे दूषित
षष्ठम खण्ड : विविध राष्ट्रीय सन्दर्भो में जैन-परम्परा की परिलब्धियाँ
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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