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कुसुमसती चढ़ती रति सती कुसुमवती के साधना सुमन -प्रवर्तक मुनिश्री रूपचन्दजी महाराज -अ० प्र० मुनि कन्हैयालाल 'कमल' ॥ दोहा ॥
सतीजी का नाम
नाम का एक-एक अक्षर अनुपम । "सोहन" शिष्या सोहनी गुणसर पोयणफूल, "कुसुमसती" चढती रती समरस रस मशगूल ॥ पहला अक्षर “कु” हैसोहन श्रुतकर मूंदड़ी ता बिच हीरकणीह,
यह कुमुदनी का बोधक है। "कुसुमसती" चढती रती “रजत" सती रमणीह ॥ करुणामूर्ति सती का हृदय अमरगच्छगण स्वच्छमति सर्चलाइट चमकीय,
कुमुदनी के समान कोमल है। "कुसुमसती" चढ़ती रती यश अजित सुमनीय ॥ दूसरा अक्षर “सु" हैज्ञानवती गुण गजगति यति धर्म दिगधार,
यह सुमन की सुगन्ध का सूचक है । तारक घर की तारणी धन्य "कुसुम" अवतार ।।
सती का मन सुमन,
संयम की सौरभ से सुवासित है। ॥ मनहर छन्दः ॥
तीसरा अक्षर "म" हैपाप पंथ हरि करी संयम को धरी चरी,
___ यह महाव्रतों का आद्यक्षर है । घी भरि करी नाही पम्माय की भावना ।। गुरु पद झूमझूम भर्यो ज्ञान घट कुम्भ,
सती की महिमा जनमन मानव को सुधार इक् आमना ॥
महाव्रतों के मनन से मण्डित है । अमीरस वाणी तेरी जगत पिच्छानी “रूप” चौथा अक्षर "व" हैभेरी ज्ञान गुणगेरी काश्मीर जगावना ।।
यह वक्तृत्व का परिचायक है। "रजत" रसिक जिनवाणी की विशालमति, ___ सती के वचनसती तू कुसुमवती पुष्कर गुरु भावना ॥
वचन-गुप्ति युक्त आदेय वचन हैं। ॥दोहा॥
पाँचवाँ अक्षर “ति" है
यह तिरने तारने का प्रेरक है । दिव्यप्रभा की दिव्यता, दिव्य दिव्यता धार ।। अभिनन्दन सुग्रन्थ को, सज मन करत तयार ॥
सती कुसुमवती का
- प्रवचन तिरन तारन है। अर्हन्त अभिनन्दन का अहर्निश आराधन करने वाली शीलवती सती कुसुमवती का शत-शत अभिनन्दन ।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ