________________
महाकवि बनारसीदास ने कु-कलाओं के अभ्यास भूपति विसनी पाहुना, जाचक जड़ जमराज।। की निन्दा करते हुए दरिद्रता को प्रतिष्ठा का घातक ये परदुःख जोवै नहीं, कीयै चाहै काज ।।२६३॥ बतलाया है
राजा से परिचय थोड़ा-बहुत अवश्य लाभदायक कूकला अभ्यास नासहि सुपथ,
होता हैदारिद सौ आदर टलै ।
महाराज महावृक्ष की, सुखदा शीतल छाय। निर्धन हो जाने पर लोगों के सम्पर्क तोड़ देने सेवत फल लाभ न तो, छाया तो रह जाय ॥१२॥ की निर्दयता पर ज्ञानसार ने व्यंग्य किया है
प्रजा को राजा के आदेशों व नीति का अनुधन घर निर्धन होत ही, को आदर न दियंत ।
सरण करना चाहिए। ज्यों सूखे सर की पथिक, पंखी तीर तजत ।।
नृप चाले ताही चलन, प्रजा चले वा चाल ।
जा पथ जा गजराज तह, जातजू गज बाल । 'अपरिग्रह' दान के रूप में धन की सीमितता
॥१३८॥ और सदुपयोग तथा 'लोभ' व कृपणता की निन्दा
__ राजा और प्रजा के मधुर सम्बन्ध बनाये रखने के रूप में धन की समुचित उपयोगिता की उक्तियाँ
| में मन्त्री को बड़ी भूमिका रहती हैआर्थिक नीति के अन्तर्गत भी समाहित की जा सकती है।
नृप हित जो पिरजा अहित, पिरजा हित नृप रोस ।
दोउ सम साधन करै, सो अमात्य निरदोष ॥२१०॥ राजनीति-शासक एवं शासित की प्रवृत्तियाँ, अच्छे मन्त्रियों के अभाव में राजा अपने आदर्शों शासन के अंग और उनके कर्तव्य तथा शासन-व्यवस्था से सम्बन्धी उक्तियाँ राजनीति के अन्तर्गत आती हैं।
से च्युत हो जाता हैअधिकांश जैन नीतिकारों के मक्तकों में राजनीति नदी तीर को रूखरा, करि बिनु अंकुश नार । नहीं है। दीवान के रूप में जयपर राज्य में काम राजा मंत्री ते रहित, बिगरत लगै न बार ॥१२४॥ करने वाले कवि बुधजन ने राजनीति के सम्बन्ध में
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिन्दी जैन अपने विचार प्रकट किये हैं।
मुक्तक काव्य में वैयक्तिक व्यवहार, समाज, राज्य ___ बुधजन के अनुसार शासक अथवा राजा ढीले ५
एवं अर्थ से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं का गम्भीरता-C चित्त का नहीं होना चाहिए, नहीं तो दृढ़तापूर्वक
पूर्वक विवेचन किया गया है। भारतीय नीति अपने आदेश नहीं मनवा सकेगा
साहित्य के विकास में शिपिलाचार के युग में लिखी 1122
गई इन रचनाओं का सामयिक योगदान तो है ही, | 1 - गनिका नष्ट संतोष तें, भूप नष्ट चित्त ढील। उक्त रचनाएँ भारतीय चिन्तन की संवाहक होने पर
॥१७७।। के कारण आज भी मूल्यवान् हैं। राजा अपने कार्य की पूर्ति के लिए किसी की भारतीय चिन्तन और काव्य के विकास में MOL पीड़ा को सहृदयतापूर्वक नहीं विचारता- इनका उल्लेख अतीव आवश्यक है ।
पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास र
-
29
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
Jain
E
ton International
ser
rate & Personal Use Only
www.jainelibe