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________________ शान (Tien shan) तथा एलाइपार पर्वत श्रृंखला (Trans Ali system) की बर्फ से ढकी चोटियों से घिरा पामीर का उन्नत पठार । इन पांचों उन्नत प्रदेशों में से 'पामीर के पठार' से मेरु की तुलना करना और भी अधिक सही और युक्तयुक्त प्रतीत होता है । पामीर और मेरु में नाम का भी सादृश्य है । पा= मीर = मेरु । यदि पामीर के पठार से मेरु की तुलना सही है तो पुराणों में प्रतिपादित जम्बूद्वीप के पार्श्ववर्ती प्रधान पर्वतों की भी पहिचान की जा सकती है । पुराणों के अनुसार मेरु के उत्तर में तीन पर्वत हैं- नील, श्वेत (जैन परम्परा के अनुसार " रुक्मी") और श्रृंगवान् (जै० प० शिखरी) ये तीनों पर्वत, रम्यक, हिरण्मय ( जै० प० हैरण्यवत्) तथा कुरु ( जै० प० ऐरावत् ) क्ष ेत्रों के सीमान्त पर्वत हैं । इसी प्रकार मेरु के दक्षिण में भी तीन पर्वत हैं - निषध, हेमकूट (जै० प० महाहिमवान् ) तथा हिमवान् (ये तीनों पर्वत) हिमवर्ष (जै. म. हरि ) किम्पुरुष ( जै० प० हेमवत) और भारतवर्ष (जै० प० भरत) क्षेत्रों सीमान्त पर्वत हैं । ये छहों पर्वत पूर्व और पश्चिम में लवण समुद्र तक फैले हैं । जैन परम्परा के अनुसार भी मेरु के उत्तर में तीन वर्षधर पर्वत है-नील, रुक्मी और शिखरी । दोनों (जैन - वैदिक) परम्पराओं में केवल नील पर्वतमाला का ही नाम सादृश्य नहीं है, अपितु रुक्मी (श्वेत) और शिखरी (श्रृंगवान्) पर्वतमाला का भी नाम सादृश्य है । इन पर्वतों की आधुनिक भौगोलिक तुलना हम विभिन्न पर्वतमालाओं से कर चुके हैं । इन पर्वतमालाओं तथा उत्तरी समुद्र (आर्क इन सभी पर्वतों की तुलना वर्तमान भूगोल से टिक ओशन) अर्थात् लवण समुद्र के बीच क्रमशः इस प्रकार की जा सकती है : १. श्रृंगवान् ( शिखरी) की कराताउ - किरगीज वर्तमान पर्वत श्रृंखला (Kara Tau Kirghis Ket - man Chain) है। २. श्वेत ( रुक्मी) की नूरा ताउ - तुर्किस्तान अतबासी पर्वत श्रृंखला (Nura Tau - Turkistan Atbasi Chain) से, ५. हेमकूट ( महाहिमवान् ) की लद्दाख - कैलाशट्रान्स हिमालयन पर्वत श्रृंखला (Laddakh-Kailash-Trans-Himalayan chain) से, तथा ६. हिमवान् की हिमालय पर्वत श्रृंखला ( Great Himalayan Range ) से 11 (ग) जम्बूद्वीप - जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, पुराणों में मेरु (पामीर) के उत्तर में क्रमशः तीन पर्वतमालाएँ हैं जो पूर्व-पश्चिम लम्बी हैनील, जो कि मेरु के सबसे निकट और सबसे लम्बी पर्वत माला है, श्वेत, जो कि नील से कुछ छोटी और उससे उत्तर की ओर आगे है, तथा अन्तिम श्रृंगवान्, जो कि सबसे छोटी तथा श्वेत से उत्तर की ओर आगे है । ain Education International नील और श्वेत ( रुक्मी) के बीच रम्यक या रमणक (जैन परम्परा में रम्यक) वर्ष, श्वेत और शृंगवान् (जै० प० में शिखरी) के बीच हिरण्मय या हिरण्यक ( जै० प० में हैरण्यमान् ) तथा श्रृंगवान (जैन पर० में ऐरावत) नाम के वर्ष क्षेत्र है । 2 जम्बूद्वीप का उत्तरी क्षेत्र ३. नील का जरफशान ट्रान्स आलाइ - टीनशान पर्वत श्रृंखला से, (Zarafshan - Trans Alei Tien - shn Chain)। सबसे पहले हम रम्यक क्षेत्र को लेते हैं । जैन परम्परा में भी इसका नाम रम्यक वर्ष क्षेत्र है । इसके दक्षिण में नील तथा उत्तर में श्वेत पर्वत है । हमारी पहचान के अनुसार नील, नूर ताउ — तुर्किस्तान ४. निषध की हिन्दुकुश तथा कुनलुन पर्वत पर्वत मालाएँ है और श्वेत, जरफसान - हिसार श्रृंखला से । पर्वत मालाएँ हैं । १ डा० एस० एम० अली 'जिओ० आफ पुरान्स" पृ० ५० से ५८ तक । २ डा० एस० एम० अली - "जिओ० आफ पुरान्स" अध्याय- ५, 'रीजन्स आफ जम्बूद्वीप- नार्दन रीजन्स पृष्ठ ७३ । पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास ३८६ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012032
Book TitleKusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherKusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
Publication Year1990
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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