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___ मैं आप युवा वर्ग से कहना चाहता हूँ शायद मनुष्य मनुष्य का शत्र बन जाता है । मित्रता, प्रेम, HD आप पहली या तीसरी कोटि में नहीं है। आप में त्याग और सेवा से ही मिलती है, प्रशंसा और कीर्ति । से अधिकांश दूसरी स्थिति में हैं, जिनके मन में धर्म धन से नहीं, कर्तव्य-पालन से मिल और नीति के प्रति एक निष्ठा है, एक सद्भावना प्रसन्नता और आत्म-सन्तोष धन से कभी किसी को है, किन्तु भौतिक प्रलोभनों का धक्का उस निष्ठा मिला है ? नहीं ! इसलिए युवा वर्ग को अपना की कमजोर दीवार को गिरा सकता है अतः आपसे दृष्टिकोण बदलना होगा। इन आंखों में लक्ष्मी के | ही मेरा संदेश है कि आप स्वयं को समझें, अपने सपने नहीं किन्तु कर्तव्य-पालन और सेवा एवं सह-IN महान लक्ष्य को सामने रखें । महान लक्ष्य के लिए योग के संकल्प सँजोओ! स्वयं बलिदान करने वाला मरकर भी अमर रहता
अधिकार बनाम कर्तव्य . एक उर्दू शायर ने कहा है
आज चारों तर्फ अधिकारों की लड़ाई चल रही 10) जी उठा मरने से, जिसकी खुदा पर थी नजर,
है। परिवार में पुत्र कहता है-मेरा यह अधिकार |IKES जिसने दुनियां ही को पाया, था वह सब खोके मरा! हा
__ है, पुत्री कहती है- मेरा यह अधिकार है। पत्नी
माता-पिता, सभी अपने-अपने अधिकार की लड़ाई 3
में कर्तव्य एवं प्रेम का खून बहा रहे हैं । इसी प्रकार जो जीना हो तो पहले जिन्दगी का मुद्दआ समझे समाज में वर्ग संघर्ष बढ़ रहा है। नौकर अपने एक खुदा तोफीक दे तो आदमी खुद को खुदा समझे! अधिकार की माँग करता है, तो मालिक अपने
अधिकार की माँग करता है। अधिकार की भावना धन, सुख-सुविधायें, ऊंचा पद, ऐशो-आराम यह मनुष्य जीवन का लक्ष्य नहीं है, ये तो एकमात्र जीने
ने ही वर्ग संघर्ष को जन्म दिया है, परिवारों को के साधन हैं । साधन को साध्य समझ लेना भूल है।
तोड़ा है, घर को उजाड़ा है, और समाज-संस्था संसार में लाखों, करोड़ों लोगों को अपार सम्पत्ति
को भिन्न-भिन्न कर दिया है। अधिकार की और सुख साधन प्राप्त हैं, फिर भी वे बेचैन हैं और
लड़ाई में आज कर्तव्य-पालन कोई नहीं पूछता । लूखी-सूखी खाकर भी मस्ती मारने वाले लोग
पुत्र का अधिकार है, पिता की सम्पत्ति में, परन्तु
कोई उससे पूछे, उसका कर्तव्य क्या है ? माता- 15 दुनिया में बहुत हैं।
पिता की सेवा करना, उनका दुःख-दर्द बांटना, युवकों का दृष्टिकोण-आज धनपरक हो रहा क्या पुत्र का अधिकार नहीं है । अधिकार की माँग || है या सुखवादी होता जा रहा है। धन को ही करने वाला अपने कर्तव्य को क्यों नहीं समझता ? सब कुछ मान बैठे हैं । उन्हें धन की जगह त्याग यदि युवक, अपने कर्तव्य को समझ ले, तो अधिऔर सेवा की भावना जगानी होगी । संसार धन से कारों का संघर्ष खत्म हो जायेगा, स्वयं ही उसे नहीं, त्याग से चलता है, प्रेम से चलता है। एक अधिकार प्राप्त हो जायेंगे। माता पुत्र का पालन-पोषण किसी धन या उपकार
एक सूक्ति है-'भाग की चिन्ता मत करो, की भावना से नहीं करती, वह तो प्रेम और स्नेह के कारण ही करती है। क्या कोई नर्स जिसको
भाग्य पर भरोसा रखो । भगवान् सब कुछ देगा।' आप चाहें सौ रुपया रोज देकर रखें, माँ जैसी सेवा मुझे एक कहानी याद आती है-एक बड़े परिचर्या कर सकती है ? धन कभी भी मनुष्य को, धनाढ्य व्यक्ति ने एक नौकर रखा, उसको कहा मनुष्य का मित्र नहीं बनने देता । धन के कारण तो गया, तुम्हें यह सब काम करने पड़ेंगे, जो हम
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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