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शक्ति है। 'युवावस्था' जीवन की सबसे महत्वपूर्ण फिर श्रद्धा का दीपक जलायें। श्रद्धाशीलता हो । घड़ी है, किन्तु इस शक्ति को, इस समय की सन्धि मनुष्य को कर्तव्य के प्रति उत्साहित करती है, को हम तभी उपयोगी बना सकते हैं, जब वह अपनी कर्तव्य से बाँध रखती है। श्रद्धा कर्ण का वह कवच सकारात्मक शक्तियों को जगायेगी। अपनी सकारा- है जिसे भेदने की शक्ति न अर्जुन के वाणों में थी त्मक शक्तियों को जगाने के लिए युवा वर्ग को इन और न ही भीम की गदा में। पाँच बातों पर ध्यान केन्द्रित करना है
___ श्रद्धा अज्ञानमूलक नहीं, ज्ञानमूलक होनी १. श्रद्धाशील बनें-आज का युवा मानस
. चाहिए। इसलिए पहले पढ़िये, स्वाध्याय कीजिए, श्रद्धा, आस्था, विश्वास, फेथ (Faith) नाम से
ज्ञान प्राप्त कीजिए। सत्य-असत्य की पहचान का
थर्मामीटर अपने पास रखिए और फिर सत्य पर नफरत करता है, वह कहता है-श्रद्धा करना बूढ़ों का काम है, युवक की पहचान है-बात-बात में
श्रद्धा कीजिए, लक्ष्य पर डट जाइए। यदि आपमें तर्क, अविश्वास और गहरी जाँच-पड़ताल । मैं
श्रद्धा की दृढ़ता नहीं होगी तो आपका जीवन बिना समझता हूँ-युवा वर्ग में यही सबसे बड़ी भ्रान्ति
नींव का महल होगा, आपकी योजनाएँ और कल्पया गलतफहमी हो रही है। श्रद्धा या विश्वास एक
नाएँ, आपके सपने और भावनाएँ शून्य में तैरते ऐसा टॉनिक है, रसायन है जिसके बिना काम करने गुड़
- गुब्बारों के समान इधर-उधर भटकते रहेंगे । इस1 की शक्ति आ ही नहीं सकती। जब तक आप अपने लिए युवा वर्ग को मैं कहना चाहता है, सर्वप्रथम
स्वयं के प्रति श्रद्धाशील नहीं होंगे, अपनी क्षमता पर श्रद्धा का कवच धारण करें। विश्वास करना सीखें हा भरोसा नहीं करेंगे, तव तक कुछ भी काम करने की तो सर्वत्र विश्वास प्राप्त होगा। अफवाहों में न हिम्मत नहीं होगी। श्रद्धाहीन के पाँव डगमगाते उड़ें, भ्रान्तियों के अंधड़ में न बहें, स्वयं में स्थिरता, रहत है, उसकी गति में पकड़ नहीं होती, स्थिरता हढ़ता और आधारशीलता लायें। नहीं होती और न ही प्रेरणा होती है। हम एक २. आत्मविश्वासी और निर्भय बनें-श्रद्धाशीलता व्यक्ति पर, एक नेता पर, एक धर्म सिद्धान्त पर, का ही एक दूसरा पक्ष है-आत्मविश्वास । एक नैतिक सद्गुण पर या भगवान नाम की किसी विश्वास' जीवन का आधार है। जीवन के हर क्षेत्र परम शक्ति पर जब तक भरोसा नहीं करेंगे, श्रद्धा
में विश्वास से ही काम चलता है। सबसे पहली बात नहीं करेंगे तब तक न तो हमारे सामने बढने का हैं, दूसरों पर विश्वास करने से पहले, अपने आप कोई लक्ष्य होगा, न ही मन में बल होगा, उत्साह
पर विश्वास करें। जो अपने पर विश्वास नहीं कर
सकता, वह संसार में किसी पर भी विश्वास नहीं होगा और न ही समर्पण भावना होगी। प्रेम जैसे
कर सकता। विश्वास करने की उसकी सभी बातें है। समर्पण चाहता है, राष्ट्र वैसे ही बलिदान चाहता है और भगवान् श्रद्धा चाहता है । नाम भिन्न-भिन्न
झूठी हैं, क्योंकि आपके लिए सबसे जाना-पहचाना
और सबसे नजदीक आप स्वयं हैं, इससे नजदीक का हैं, बात एक ही है, अन्तर् का विश्वास जागृत हो।
मित्र और कौन है ? जब आप अपने सबसे अभिन्न जाये तो श्रद्धा भी जगेगी, समर्पण भावना भी बढ़ेगी।
अंग आत्मा पर, अपनी शक्ति, अपनी बुद्धि और अपनी और बलिदान हो जाने की दृढ़ता भी आयेगी।
कार्यक्षमता पर भी विश्वास नहीं कर सकेंगे तो . इसलिए मैं युवा वर्ग से कहना चाहता हूँ- दुनिया में किस पर विश्वास करेंगे ? माता, भाई,
आप 'श्रद्धा' नाम से घबराइए नहीं । हाँ, श्रद्धा के पत्नी, पुत्र, मित्र ये सब दूर के एवं भिन्न रिश्ते हैं। है नाम पर अंधश्रद्धा के कुएं में न गिर पड़ें, आँख खुली आत्मा का रिश्ता अभिन्न है, अतः सबसे पहले में रखें, मन को जागृत रखें, बुद्धि को प्रकाशित, और अपनी आत्मा पर विश्वास करना चाहिए।
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम ( 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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