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घर-घर और गाँव-गाँव में शुभ मंगल स्वराज का मधुमास क्यों नहीं खिला ? जबकि भौतिक सुख साधनों की सभी क्षेत्रों में प्रचुरता परिलक्षित हो रही है । पग-पग और डग डग पर साधन उपलब्ध हैं । कुछ भी हो, भौतिक विज्ञान का सर्वोपरि विकास हो जाने पर भी विज्ञान अपने-आप में अपूर्ण और अधूरा ही रहने वाला है । वह इसलिए भी कि भौतिक विज्ञान प्राणी जगत् के शारीरिक, मानसिक, वाचिक, इन्द्रिय, मनविषयक एवं पेट, परि वार, पद, प्रतिष्ठाओं की क्षणिक पूर्ति करने तक ही सफल रहा है । माना कि उसने संसार को कुछ सुख-सुविधा के लिए तीव्रगामी वाहनों का विकास कर, यात्रा की अनुकूलता दी, तरंगों पर कंट्रोल कर एक ज्वलंत समस्या का समाधान खोज निकाला, राकेट - उपग्रह शक्तियों की शोध कर भूगोल, खगोल सम्बन्धी जानकारियाँ दीं और टेलीफोन, टी० वी० का आविष्कार कर हजारों मील दूर रहे समाचारों से अवगत किया, कराया ।
दूसरे पहलू से देखा जाय तो भौतिक विज्ञान से प्राणी जगत् की हानियां कम नहीं हुई हैं । विकास और विनाश दोनों पहलू भौतिक के रहे हैं । एक बाजू पर विकास और सुख-सुविधा का सरसब्ज वाग का लेबल लगा है तो दूसरी ओर विनाश और दुविधा का ज्वालामुखी छिपा हुआ है ।
भोपाल में घटित गैस काण्ड के घाव अभी तक भरे नहीं हैं । विषाक्त गैस रिसने से हजारों नरनारियों, बालकों की ज्योति को बर्बाद कर दिया, साथ ही पशु-पक्षी जगत् भी उससे बच नहीं पाया ।
वस्तुतः वैज्ञानिक सुविधाजन्य प्रवृत्तियों से आज मानव समाज सुविधाभोगी, अधिक आरामी अवश्य बना है किन्तु जीवन में निष्क्रियता निष्कर्म - यता का विस्तार हुआ है, साथ ही मानव परापेक्षी पंगु बनता हुआ व्यसन और फैशन की चका'चौंध में अपने को भूलता जा रहा है । यह सब क्या है ? इसे विज्ञान की देन समझना चाहिए । इस
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दृष्टिकोण से विज्ञान मानव समाज के लिए वरदान नहीं अभिशाप बनता जा रहा है ।
इस विज्ञान में सुन्दरता है किन्तु मूल तत्व शिव अर्थात् कल्याण का अभाव रहा है। प्रकृति का अन्वेषण-अनुसंधान करना, नाशवान वस्तुओं का परिवर्तन-परिवर्धन एवं नवनिर्माण करने तक ही विज्ञान की अगणित उपलब्धियाँ हस्तगत होने पर भी आज सामाजिक, राष्ट्रीय और पारिवारिक जीवन निराशा के झूले ही झूल रहा है । इन्द्रियजन्य सुख-सुविधा के साधनों की विपुलता ही सब कुछ नहीं है; चिरस्थायी शांति एवं आत्मानन्द-आत्मधन आत्म-विकास सम्बन्धी समस्या का समाधान भौतिक विज्ञान में खोजने का मतलब होगा - रिक्तता से रिक्तता की ओर लक्ष्यविहीन अंधी दौड़ लगाने जैसी स्थिति !
वस्तुतः यथार्थ आत्मशांति के लिये प्रत्येक पिपासु मानव को अध्यात्म विज्ञान के दरवाजे खटखटाने होंगे | अध्यात्म विज्ञान के उद्गमदाता, द्रष्टा व सृष्टा भ० ऋषभदेव से महावीर प्रभृति व राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध आदि महात्माओं ने अध्यात्म-विज्ञानोदधि में अवगाहन किया, शनैः-शनैः साधना-उपासना की गहराइयों में उनकी चेतना पहुँची, चिंतन का मंथन हुआ, अंत में सर्वोपरि सर्वोत्तम आत्म-विकास का साध्य फल मोक्ष प्राप्त किया और कई करेंगे ।
अध्यात्म-विज्ञान (Soul - Science ) का कार्यक्षेत्र, कर्म-क्षेत्र उभय जीवन अर्थात् लौकिक और लोकोत्तर जीवन को अन्तर्मुखी और ऊर्ध्वारोहण की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है । अध्यात्म विज्ञान विकास के अवरोधक इन्द्रियों और मन के विषयों- शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पर नियन्त्रण पाने के लिये ध्यानी- ज्ञानी प्रवृत्तियों और योगासन का विधान करता है । अहिंसा भगवती की अर्चा से सुख-शांति के स्रोतों का प्रस्फुटन, संयमी वृत्ति से अनैतिकता का अन्त, तपाराधना से शुभाशुभ कर्मवर्गणा का आत्मस्वरूप से पृथक्करण होना और
चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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